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________________ खोने वाला इंसान स्वर्गीय होने को कहाँ राजी है ? उसे भरोसा है कि मर कर वह स्वर्ग में जाएगा, लेकिन फिर भी मौत से घबराता है। जो होता है सब कुछ मजबूरी में होता है । __सब कुछ मन की चंचलता का परिणाम है | मन भविष्य के लिए व्यक्ति को भटकाता है और जब भविष्य वर्तमान बन जाता है तो, मन उसे अस्वीकार कर देता है । कल चैतन्यमूर्ति, मन के संबंध में ही चर्चा कर रहे थे और मन की सजगता के बारे में, कई जिज्ञासाएं भी । मन की सजगता के बारे में कृष्णमूर्ति का सिद्धांत काफी महत्वपूर्ण है। वे कहते हैं 'चॉयसलैस अवेयरनेस' यानि चुनाव रहित सजगता, ऐसी जागरूकता जिसमें अच्छे-बुरे का चुनाव न हो, स्वर्ग-नरक का चुनाव न हो । क्योंकि चुनाव, केवल एक के प्रति राग की अभिव्यक्ति ही नहीं है, अपितु दूसरे के प्रति द्वेष की भी अभिव्यक्ति है | इसमें एक को नकारना है, दूसरे की स्वीकार करना है। अगर खन्ना को मोहर लगाई, तो अपने आप सिन्हा को नकार दिया । इसीलिए कृष्णमूर्ति कहते हैं, 'सजगता, चुनाव रहित हो ।' __ मन की परेशानी का मूल कारण ही चुनाव है | जो प्राप्त है, उसमें संतुष्टि नहीं है और जो अप्राप्त है, उसके लिए तृष्णा है | जो है , उसमें तृप्ति यही वर्तमान में जीना है । घर से पत्नी को छोड़कर ऑफिस की ओर रवाना हुए, पत्नी ने मुस्कुराते हुए ऑफिस जाने के लिए विदा दी, पर जैसे ही वहां किसी और को देखा, उसके साथ आंखें दो-चार की, कि चुनाव की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई । अब घरवाली में सौ दोष और उसमें उतनी ही विशेषताएं दिखाई देने लगीं । जिस घर में रह रहे हैं कई दशकों से, वहीं हम कभी दुखी होते हैं, कभी सुखी । एक पड़ोसी का सात मंजिला मकान आर्थिक योग्यताओं पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है, वहीं दूसरे पड़ोसी की झोंपड़ी हमारी योग्यताओं को बढ़ावा देती है । व्यक्ति चुनाव करता है। सात मंजिले मकान को देखकर जहां उसकी तृष्णा जाग्रत होती है और वह स्वयं को दुःखी महसूस करता है, वहीं झोपड़ी को देखकर उसे आत्मसंतुष्टि होती है यह सोचकर कि मैं उससे बढ़कर हूँ। परेशानी मन की है, मन को है, मन से है | मन का मार्ग शांति तक है ही नहीं । सुख मिलता है, पर दुख का पुट साथ लिए । स्वर्ग मिलता है पर नरक की प्रतीति साथ लिए । फूल तो हाथों में आया है, सर्वोदय हो साक्षी-भाव/७३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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