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मुकाम मात्र घरौंदे ही हों, फिर भी व्यक्ति उस झूठ में भी सच की परछाई देखता है | नीत्से ने सच कहा है, 'व्यक्ति झूठ के बिना जी नहीं सकता।'
व्यक्ति झूठे सपने देखता है, झूठे जाल बुनता है और औरों के सहारे चलने वाली जिंदगी को अपनी जिंदगी समझता है। जब कोई व्यक्ति संसार-सागर को तैरने के लिए हाथ चलाता है तब लोग रोते हैं, माँ-बाप हाय-तौबा मचाते हैं, खुदकशी करने की धमकी देते हैं और जब कोई डूबने की तैयारी करता है तो, दुनिया उसे धक्का मारती है । संन्यास के लिए बढ़ने वाले कदम को रोका जाता है और संसार की ओर बढ़ने वाले कदम को सहारा दिया जाता है |
संसार तो एक बाजार है । क्या नहीं मिलता है यहाँ ! स्वयं को छोड़कर सभी कुछ तो मिलता है | जो पाने योग्य है उसे छोड़कर, सब कुछ मिलेगा दुनिया में । जो कुछ मिलता है संसार में, सब कुछ वह है जिसे पाने पर, पाने की चाह और फैलती जाती है, 'जल कुछ ऐसा मिलता है कि प्यास घटती नहीं, जलन बुझती नहीं, तृप्ति आती नहीं।'
जिसे पाकर, संसार में सब कुछ पाने की चाह चली जाती है, बस वह संसार में नहीं मिलेगा । उसकी बिक्री बाहर नहीं, अपने अन्तर्-जगत में हो रही है। ___ मनुष्य मन उस बच्चे-सा है, जो मेले में जाकर सब कुछ पाना चाहता है । हर चीज को खरीदने के लिए ठिठक जाता है । बच्चा सांझ ढलते सारी चीजें भी खरीद ले, उनसे कुछ समय के लिए आशा भी बंध जाती है, पर अगले दिन फिर कुछ पाने की इच्छा होती है । मन भी इसी प्रकार पुनरुक्ति करता है । मन विविध जाल बुनता है । कई संबंध स्थापित करता है । कईयों से गलबांही करता है तो कइयों से कट्टी। जोड़-तोड़ में कई रिश्ते बनते-बिगड़ते हैं । जब जन्म भी अपना नहीं, मौत भी अपनी नहीं, तो ये बीच के रिश्ते-नाते अपने कैसे हो सकते ह? सब मन की तरकीबें है, मन के जाल हैं । तभी तो कबीर ने कहा-मन के जाल हजार ।
व्यक्ति भविष्य की चिंता में खोया रहता है । स्वर्ग की कल्पनाएं करता है | सोचता है, स्वर्ग में अपार ऐश्वर्य को प्राप्त करूंगा । जिन अप्सराओं का अब तक नाम सुना है, उनके साथ जीऊँगा, स्वर्ग में आखिर मौज-मस्ती के सिवा है ही क्या ? पर, स्वर्ग की कल्पनाओं में ७२/ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ
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