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भी यदि समीक्षक बीच-बचाव करे तो, दोपाये के शरीर की इतर सम्भावनाओं को ध्यान में रखते हुए, चौपाये की बजाय लाजवाब और बेशकीमती है।
अनुभव की गहराई, कल्पना की ऊँचाई, संस्कार की लम्बाई और बोध की चौड़ाई ही खासकर शरीर की एक जैसी नस्लों के मध्य अलगाव-रेखा खींचती है।
इसलिए मनुष्य-शरीर का होना भी एक बड़ा चमत्कार है । इस चमत्कार का लाभ न उठाना सीधी बगावत है । अपनी महान् उपलब्धि पर अंहकार न हो, पर सन्तोष करते हुए उसका उपयोग अवश्य हो । मनुष्य शरीर में ऐसे अनेक तत्त्व हैं, जिनकी गतिविधियां प्रतिपल चलती रहती हैं, पर उनका दर्शन अशक्य है । वे मात्र अनुभव गोचर ही हैं। आत्मा, चित्त, मन आदि वे सूक्ष्म तत्त्व हैं जिन्हें चीर-फाड़ करके भी देखा-दिखाया नहीं जा सकता एवं जिनके शरीर से भिन्न होने पर, शरीर मात्र एक पिंजरा भर रह जाता है।
शरीर, आत्मा और मन ये तीनों एक दूजे से जुड़े हैं । देह एवं मनोमुक्ति ही मोक्ष है । शरीर और आत्मा का सीधा सम्बन्ध है | मन इन दोनों के बीच का वह पहलू है, जो क्रिया-प्रतिक्रिया के लिए शरीर और आत्मा, दोनों को प्रेरित करता है । अतः साधना-मार्ग में देह-दण्डन एवं आत्म-दण्डन परं कम, मनोदण्डन पर अधिक दबाव डाला गया है। बन्धन एवं मुक्ति दोनों का मूल कारण मन को स्वीकार किया गया है, 'मनः एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयोः ।'
शरीर के पार हम मन हैं । मन उर्जा का पिंड है । दिनरात भटकते मन को अगर सही दिशा मिल जाये, तो उसी मन से मनोविज्ञान पैदा हो सकता है, और उसी मन से ऊपर उठने की चैतन्य क्षमता । हमें मन को मारना नहीं, साधना है । वीणा को तोड़ना नहीं, तारों को जोड़ना है। - जबसे इस दुनिया में मानव-देह अवतरित हुई है, देह में आत्म-शक्ति प्रकट हुई है, तभी से मन इन दोनों के साथ जुड़ा हुआ है । शरीर की क्रियाएं करने के लिए मन प्रेरक है, वहीं आत्म-शक्तियों को दबाने में भी मन अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है । ध्यान हो या योग, पूजा हो या प्रार्थना, सभी में मनोनिग्रह महत्वपूर्ण है । मन का निग्रह करना कठिन है, पर अभ्यास व वैराग्य से यह भी शक्य है । ७०/ ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ
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