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शरीर और मन-जीवन-विज्ञान के दो मुख्य मुद्दे हैं । शरीर अपने-आप में एक समाज है । चित्त, मस्तिष्क, विचार वगैरह मन एवं मन से जुड़े घरेलू रिश्तेदार हैं।
शरीर सूक्ष्म परमाणुओं की सांठगांठ है। इसलिए वह वट-बीज से. बरगद की बढ़ती-घटती कहानी का दस्तावेज है। .
मन शरीर के अन्तर्गत है, किन्तु इसकी रचना शरीर से काफी बारीक है । शरीर के निर्माण में जितने परमाणुओं का सहयोग लिया जाता है, उससे सौ गुने परमाणुओं की मदद ली जाती है, मन के सर्जन
में ।
शरीर के निर्माण में कुछ ऐसे परमाणु होते हैं, जो उसे बौना या लम्बा कर देते हैं; काला या गोरा कर देते हैं । अनेक लोग गेहुँए भी दिखाई देते हैं । गेहुँआ रंग तो, काले-धोले परमाणुओं की कमोबेश परिणति है । बनावट के प्रथामिक चरण में तो कुछ परमाणु ही मिली-जुली व्यवस्था बैठाते हैं, पर समय की सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते दूसरों का भी सहयोग एवं शुभाशीर्वाद लेना प्रारम्भ कर देते हैं । भोजन, पानी, हवाखोरी आदि के अन्तर्गत ये स्वयं के कल-कारखाने का विस्तार करते
मन जीवन की विशिष्ट उपलब्धि है। शरीर की उपलब्धि को नकारा नहीं जा सकता, किन्तु मन की उपलब्धि मनुष्य के लिए हिमालयी ऋषियों को प्राप्त होने वाली उड़न-खटोले-सी ऋद्धि है |
किसी चौपाये और दोपाये के बीच शरीर को केन्द्र बिन्दु बनाकर, किसी बड़े भेद-विज्ञान को प्रतिमूर्त नहीं किया जा सकता | जानवरों की सभी नस्लों को बिसरा भी दिया जाए, तो भी वन-मानुष, रीछ, बन्दर, या लंगूर की शक्ल का, आदमी के साथ तालमेल बैठाया जा सकता है। कान, आँख, नाक, मुँह या शरीर के अन्य अवयव मनुष्य और जानवर के बीच करीबी से शरीर साम्य नजर मुहैय्या कराते हैं । फिर
सर्वोदय हो साक्षी-भाव का/६९
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