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'ध्यान कृत्यों से छुटकारा नहीं दिलाता, कर्तृत्व-भाव से दिलाता है । एक आम नागरिक की तरह, ध्यानी भी वे सभी कृत्य करता है जिनकी जीवन में अनिवार्यता है, पर दिशा भिन्न होती है। वहाँ नजरें वे नहीं होतीं जिनमें संसार की छाया हो । उसके हर कृत्य में एक सजगता होगी, साक्षी-भाव का सहारा लिये। उस साधक के द्वारा अगर मक्खी को भी उड़ाया जा रहा है, तो कृत्य इतना सहज सरल होगा मानो मक्खी अपनी ही आत्मा हो।"
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