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चाहिए । रात को सोते समय मन के अच्छे-बुरे सभी कार्यों पर विचार करें । अच्छे संकल्पों की सराहना और बुरे विकल्पों के प्रति करुणा, अगर व्यक्ति प्रतिदिन ऐसा करता है तो परिणाम यह निकलेगा कि सत्कर्म के प्रति संकल्प बढ़ते जायेंगे और दुष्कर्म से पुनर्वापसी होगी । हम कोशिश करें कि मन को हर समय सत्कर्म में सलंग्न रखेंगे । आवश्यकतानुसार निर्देश दें अपने विपरीत संवेगों को पहचानें, और उन सबके प्रति साक्षी भाव में लौटने का प्रयास करें। अशुभ से शुभ की ओर प्रारम्भ की गई यह यात्रा, अंत में शुद्धत्व-सिद्धत्व की मंजिल प्राप्त करा देती है । हमारी यह मजबूरी है कि हमारा मन कभी निकम्मा नहीं रह सकता तो अच्छा यह होगा कि उसे मांगलिक कार्यों में संलग्न करें। जब मन अनेक सत्कर्मों में सलंग्न हो जाये तब उसे एकाग्र करने का प्रयास करें।
मन की एकाग्रता के लिए हम सालम्बन ध्यान का भी प्रयोग कर सकते हैं, जैसे ज्योति को एकटक निहारना । सांध्य-वेला में एकांत स्थान पर एक दीप प्रज्ज्वलित करें | पांच मिनट, दस मिनट या पद्रह मिनट उसे एकाग्रता के साथ निहारने का प्रयास करें । वह अकम्प ज्योति आपके मन को भी अकम्प कर सकती है । पहले खुली आंखों से उसे निहारें, फिर उस ज्योति को अपनी ही नेत्र से छोटा करें । जैसे-जैसे आप उसे छोटा करते जायेंगे, वह धुंधली पड़ती जायेगी । आंख बंद करने के बाद दोनों भौहों के बीच ललाट पर अपनी दृष्टि लगाकर तब तक देखते जायें जब तक भीतर में निधूम ज्योति का अभ्यास न हो जाये | बाहर की ज्योति का सहारा लेकर, भीतर की ज्योति को प्रगट करने की यह सामान्य प्रक्रिया है | इसी तरह खिलते हुए फूल को निहारना, झरने से बहती जलधारा को निहारना या मूर्ति को देखना, ये सब प्रक्रियाएँ भी हमारी मानसिक एकाग्रता में सहायक सिद्ध हो सकती हैं । प्रारम्भ में फूल बाहर खिलेगा और अंत में भीतर । क्रमिक अभ्यास से आप पायेंगे जो जलधारा बहिर्मुखी है, वह अंतर्मुखी होती जा रही है । मूर्ति के परमात्मा को निहारते-निहारते तुम अपने भीतर परमात्मा को प्रगट कर लोगे । जैसे अशुभ तत्त्व का चिन्तन हमारे भीतर अशुभ तत्त्व को मूर्त रूप देता है वैसे ही शुभ भी मूर्त रूप ले सकता है । क्योंकि मन का स्वभाव है वह जिस किसी वस्तु तत्त्व या पदार्थ का चिन्तन करता है, उसे अपने भीतर मूर्त रूप भी दे देता है | अगर एक माँ विदेश में रहने वाले पुत्र के बारे में सोचती-विचारती है, तो उसकी ६४|ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ
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