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इसलिए महावीर व्यक्ति को मन की विकृतियों की जानकारी देने के बाद, सुकृत का दिशा-निर्देश भी कराते हैं । महावीर बंधन में से ही विमोचन की कल्पना कर रहे हैं । जो मन तुम्हें बांध रहा है वही मन तुम्हें मुक्ति भी दे सकता है। ध्यान के लिए मानसिक एकाग्रता आवश्यक है, पर मैं एक बात और कहना चाहूंगा कि इस एकाग्रता का सही मागदर्शन होना भी आवश्यक है ।
हमारी बीमारियों का कारण, ९०% केवल मन है । रोग और इलाज के कारण और स्थान परिवर्तित हो जाते हैं, लेकिन मूल उत्पत्ति स्थान नहीं बदल पाता । अगर वृक्षों की जड़ों में रोग फंसा है तो, पत्तों का इलाज करने से क्या लाभ और किस-किस पत्ते को सुधारोगे । जिसकी जड़ कड़वी है, चाहे उसका फल चखो या फूल, पत्ते चखो या डालियाँ, कड़वाहट तो सर्वत्र मिलेगी । पत्ते - पत्ते में कड़वाहट फैली है इसका कारण डालियाँ नहीं है, वृक्ष की शाखाएं भी नहीं हैं, इसका कारण जड़ है, बीज है । एक व्यक्तित्व में ही क्रोध है, अहंकार है, माया और लोभ है, राग और द्वेष है, जीवन का हर चरण दूषित है, किस-किस चरण को सुधारोगे ? हम अपनी वृत्तियों के किसी एक तत्त्व को दबायेंगे तो दूसरातत्त्व उभरेगा, क्रोध को दबायेंगे तो वासना उभरेगी, लोभ को दबायेंगे तो माया उभरेगी, राग को दबायेंगे तो द्वेष उभरेगा, इसलिए इनको दबाने की बजाय, इनके मूल उत्स को ढूंढो । अगर वह सुधर गया तो सब कुछ सुधर जायेगा अगर बीज में छिपी कड़वाहट को निकाल दिया जाये तो फल भी मीठे होंगे, फूल भी और पत्ते भी मीठे होंगे । जैसे वृक्ष में गुण और अवगुण का कारण जड़ होती है वैसे ही मनुष्य में गुण और अवगुण का कारण मन होता है । मनुष्य की जड़ मन है । जो मन से जड़ है, वह मनुष्य । आदमी आदम से बना, 1 मैं मन से बना, इसलिए मनुष्य को मन से तो कभी अतिरिक्त किया ही नहीं जा सकता । हाँ अशुभ से शुभ की ओर दिया जाने वाला दिशा निर्देश, यह मनुष्य में भगवत्ता की तलाश है ।
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हमें तीन तत्त्व प्राप्त हुए हैं - आत्मा, मन और देह | इन तीन तत्त्वों का एक छोर आत्मा है दूसरा छोर देह है और जो बीच में है इसी का नाम मन है । यह जो बीच में बैठा है यही दोनों को प्रभावित करता है। जब यह देह में जाकर जुड़ता है तब संसार का जन्म होता है और जब आत्मा से जाकर जुड़ता है तब समाधि पैदा होती है । यह बात सही है कि व्यक्ति जो कुछ करता है उसका मूल नियामक तो वह स्वयं ही
मन : चंचलता और स्थिरता / ६१
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