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________________ तो ध्यान है । अभ्यास कार्य, सिद्धि में सहायक होता है और ध्यान का विकास, अभ्यास से ही होता है । कभी यह-कभी वह, कभी इधर-कभी उधर यह तो घड़ी के उस पेण्डुलम की अवस्था है, जो अनवरत इधर से उधर गति करता रहता है । विकल्पों में दूरी करने के लिए श्वासों के बीच भी अवकाश बढ़ाते जाएं, क्योंकि श्वास लेने और छोड़ने के बीच का जो समय होता है, उस समय विकल्प पास नहीं फटकते और अगर यह स्थिति लम्बी अवधि तक रहती है तो ध्यान के लिए काफी लाभदायक है। ___ एकाग्र चित्त की अवस्था के लिए, व्यक्ति स्वयं को स्वप्न और सुषुप्त दोनों से उपरत करने का प्रयास करे । स्वप्न अवस्था भटकाव है और निद्रा खुमारी । नींद लेना शरीर के लिए आवश्यक है लेकिन वह नींद शरीर और स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है, जिस पर बेहोशीपन सवार हो जाता है | सोना जरूरी है, परन्तु बोध पूर्वक । सुषुप्ति में भी जागृति की सुरभि रहनी चाहिए । रात को नींद ऐसी लें जिसमें ८०% निद्रा हो और २०% जागृति, इसलिए कहते हैं कि ध्यानी नींद में भी जगा रहता है । वहं रात्रि को विश्राम करता है, पर बेसुध नहीं होता | विश्राम अनुचित नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि हर परिश्रम विश्राम चाहता है। __सोते समय यह संकल्प करके सोयें कि मैं मौन रहूँगा । किसी संकल्प को पुनः-पुनः दोहराने से संकल्प में दृढ़ता आ जाती है और अगर सोते समय प्रतिदिन यह संकल्प करें कि मैं मौन रहूँगा तो इसका परिणाम यह आयेगा कि धीरे-धीरे मौन जबान का ही नहीं, मन का भी साथी हो जाएगा, फिर स्वप्न भी कम आयेंगे । निद्रा अवस्था में आने वाले स्वप्न, हमारे चित्त की चंचलता के द्योतक हैं | सोते समय ध्यान करके सोयें और उठने के बाद भी ध्यान करें जैसे, किसी रोगी के रोग को ठीक करने के लिए सुबह-शाम गोली दी जाती है | एक गोली अपना प्रभाव १२ घंटे तक दिखाती है । वैसे ही आधा घंटे का ध्यान १२ घंटे तक ऊर्जा, शक्ति देता है। महावीर कहते हैं, 'मानसिक एकाग्रता ही ध्यान है ।' आत्म-विकास के मार्ग में अगर कोई सर्वाधिक अवरोधक तत्त्व है, तो वह मन है । अतीत की निरर्थक स्मृतियाँ और भविष्य की कल्पनायें मन की चंचलता में सर्वाधिक सहयोगी बनती हैं | यह तो हमारा सौभाग्य है कि वर्तमान मन : चंचलता और स्थिरता/ ५७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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