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________________ बंदर भले ही बूढ़ा हो जाये, पर फदाके लगाना थोड़े ही छोड़ पायेगा। मन की ऐसी ही प्रकृति है । इसे जाने दें, जहाँ यह जाना चाहता है | आखिर कहाँ तक जायेगा ? प्रत्येक व्यक्ति के सम्बन्धों की एक सीमा होती है । जैसे-जैसे सम्बन्ध बढ़ते जाते हैं, वैसे-वैसे मन की तरंगे फैलती जाती हैं | एक बच्चे का मन जितना विक्षिप्त होता है, उससे अधिक एक युवा का होगा और एक युवक का मन जितना भटकता है, उससे ज्यादा एक वृद्ध का भटकेगा | बचपन में मन दूध से जुड़ा था, खिलौने से जुड़ा था, माता पिता से जुड़ा था, कुछ मित्रों से जुड़ा था । युवावस्था में सम्बन्ध और बढ़े । पत्नी आई, परिवार बढ़ा । मकान और दुकान हुए, सैकड़ों के साथ राग और द्वेषमूलक सम्बन्ध हुए । जितने सम्बन्ध हुए, उतनी ही गतिविधियाँ भी बढ़ी । जितना बाहर का संसार फैलाओगे, मन-उतना ही अधिक चंचल होगा। ध्यान में बैठे हो, मन अपनी गतिविधियाँ प्रारम्भ करने जा रहा है, कहीं बाहर जाना चाह रहा है । उचित यह रहेगा कि उसके साथ जोर-जबर्दस्ती न की जाए । जहाँ जाना चाहे, वहीं उसे जाने दें । आखिर कहाँ तक जायेगा ? जिन-जिन के साथ सम्बन्धों के तार जुड़े हैं, उन्हीं में से कुछ एक के पास जाकर वह वापस वहीं लौट आयेगा, जहाँ तुम हो । एक दिन जायेगा, दो दिन जायेगा, पांच और दस दिन जायेगा, लेकिन अन्ततः उसे उद्गम स्थल की ओर ही आना पड़ेगा । आता-जाता, अपने आप थक जायेगा । फिर वह थका-हारा मन तुम्हारे ध्यान में सहायक बनेगा | एक व्यक्ति प्रार्थना में बैठा था । कुछ गीत गुन-गुना रहा था | अचानक किसी पक्षी की आवाज सुनाई दी । उसे याद आया, बंबई में एक दिन मैंने ऐसी ही आवाज सुनी थी । अब मन की गतिविधियाँ प्रारम्भ हो गई। इतनी देर तक मन प्रार्थना से जुड़ा था । मन को चंचलता देने के लिए एक पक्षी की आवाज ही काफी थी । पक्षी की आवाज ने उसे बंबई की याद दिला दी । स्मृति मन से जुड़ी रही । जो अब तक प्रार्थना से जुड़ा था, वही मन अब किसी घटना से जुड़ गया। याद आया बंबई में मैं किसी के घर गया था | घर का सम्पूर्ण ढाँचा दिखाने के लिए एक स्मृति ही काफी थी । तरंगे बड़ी सूक्ष्मता से प्रवाहित होती हैं । अब यह याद आने लगी थी कि उस व्यक्ति के साथ क्या बातचीत हुई थी ! बातचीत में उस व्यक्ति ने बताया था कि दिल्ली से कलकत्ता की मसाफिरी के बीच उसका लड़का मर गया था, अब मन मुसाफिरी से जुड़ा, दिल्ली और कलकत्ता से जुड़ा । ५२/ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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