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कल्पनाओं के कारण | अतीत के कुछ ऐसे राग-द्वेष मूलक सम्बन्ध होते हैं, जिनसे मन प्रभावित होता है और भविष्य की कुछेक ऐसी तृष्णाएँ होती हैं, जिनके लिए मन भटकता है । वर्तमान में जीना ही अमन दशा है, मन से मुक्ति है । मन के भटकाव को रोकने के लिए, उसके प्रति विरक्ति लाभकारी है । अगर उससे जुड़े तो वह मनचाही सैर कराता रहेगा । ध्यान में देखो मन की गतिविधियों को, कहाँ-कहाँ जा रहा है! जहाँ-जहाँ मन जा रहा है, वहाँ-वहाँ रागात्मक सम्बन्ध कम करने की कोशिश करो | एक-एक सम्बन्ध कम होता जायेगा और मन का भटकाव थमता जायेगा । जहाँ-जहाँ मन भटक रहा है उसे भटकने दो । सम्बन्धों की भी एक सीमा है | थका-हारा मन, अन्ततः वहीं लौटकर आ जायेगा जहाँ तुम स्वयं हो ।
मन का उचित उपयोग ही ध्यान बन जाता है और गलत उपयोग अहंकार एवं क्लेश | मन का उपयोग पागल भी करता है और मन का उपयोग बुद्ध भी करते हैं । लेकिन दोनों के उपयोग में काफी फर्क है | पागल, मन के नियंत्रण में है और बुद्ध का मन नियंत्रित है । प्रबुद्ध और उपशान्त मन जहाँ अस्तित्व के द्वार उद्घाटित करता है, वहीं भ्रमित मन क्लेश का कारण बनता है । जहाँ मन समाप्त हुआ, वहीं तुम्हारी समग्रता सधेगी । और जहाँ मन समग्र हो गया, वहाँ तुम्हारा अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा । राजा के साथ भी चार सिपाही हैं और चोर, के साथ भी चार सिपाही हैं, लेकिन दोनों में फर्क है । एक पक्ष में चोर सिपाही से नियंत्रित है, वहीं दूसरे पक्ष में सिपाही, राजा के नियंत्रण में हैं। __ 'मन' और 'मैं' में संघर्ष की वृत्ति साधनात्मक जीवन के लिए लाभकारी नहीं कही जा सकती । संघर्ष होने पर दोनों में खींचतान रहेगी और इस खींचतान का नतीजा मात्र दुःख ही है । मन तुम्हारा सखा है | इससे मैत्री के तार जोड़ो और धीरे-धीरे इसे अपने काबू में करने की कोशिश करो | हम ध्यान में इसलिए विचलित होते हैं क्यों कि मन बाहर की यात्रा करता है और हम उसे रोकने की कोशिश करते हैं | बैठे थे ध्यान करने और अन्तर्द्वन्द्व शुरू हो गया । बार-बार मन को पकड़ने की कोशिश की | मन को पकड़कर टिकाना, अंधेरी कोठरी में बिल्ली पर डंडे बरसाना है, ऐसी स्थिति में जब बिल्ली कोठरी में ही न हो | तो रात भर डंडे बरसाते रहोगे, मारने वाला पसीने से तरबतर हो जायेगा, पर बिल्ली मरने वाली नहीं है ।
मन : चंचलता और स्थिरता/५१
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