SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चाहता है, केसर की सुगन्ध लेना चाहता है । मन की यही गतिविधि है । उसे सदैव विपरीत का आकर्षण होता है, स्त्री मन को पुरुष का आकर्षण और पुरुष मन की स्त्री का आकर्षण । __ मन का सम्बन्ध शरीर के हर तन्तु के साथ जुड़ा है, पर तभी तक जब तक शरीर का आत्मा से सम्बन्ध है । इसलिए मन शरीर में तभी तक रहता है, जब तक शरीर मुर्दा न हो जाए । जन्म से लेकर मृत्यु तक मन की महत्ता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता | बंधन भी मन का परिणाम है और मुक्ति भी । 'मन एव मनुष्याणाम् कारणम् बंध मोक्षयोः।' मन ईश्वर कहलाता है, 'मन ही देवता मन ही ईश्वर, मन से बड़ा न कोय ।' मुझे हंसी आती है उन लोगों पर, जो मन को दबाना चाहते हैं उसकी गतिविधियों को बलात् अवरूद्ध करना चाहते हैं । भला शक्ति को कभी दबाया जा सकता है; शक्ति को जितना अधिक दबाया जायेगा, वह उतनी ही अधिक शक्तिशाली होती जायेगी । 'स्प्रिंग' को दबाना उसमें और अधिक शक्ति पैदा करना है । मन को दबाने की नहीं, साधने की और समझने की कोशिश की जानी चाहिए। अगर मन को सही दिशा दी जाए तो, यह वह कार्य भी कर सकता है जो मुक्ति में सहायक हो ! मन की समग्रता साधने के लिए हम मन एवं उसके भीतरी-बाहरी परिवेश को समझने की चेष्टा करें | ___ मन, मस्तिष्क में हो ऐसा नहीं है । कुछ लोग इसे मस्तिष्क में मानते हैं। कई लोग इसका केन्द्र-बिन्दु हृदय में मानते हैं । यह बात सही है कि मन की वृत्तियों से सर्वाधिक मस्तिष्क ही प्रभावित होता है, पर उसकी तरंगे सम्पूर्ण शरीर में प्रवाहित होती है | मन सक्रियता है, मन वृत्ति है । यह वहाँ-वहाँ जाना चाहता है, जहाँ-जहाँ तुम्हारे रागात्मक सम्बन्ध हैं । उन्हीं का चिन्तन करता है, जिनसे तुम सम्मोहित हो । जो यह कहते हैं कि मन की चंचलता के कारण ध्यान नहीं सधता, उन्होंने वास्तव में ध्यान को साधने की कोशिश ही नहीं की । वे अभी तक ध्यान के करीब ही नहीं पहुँचे हैं | जब ध्यान होता है तो मन अपने आप सध जाता है । जहाँ व्यक्ति का ध्यान, वहीं व्यक्ति का मन | जरा उन लोगों से पूछो जो यह कहते हैं कि माला और ध्यान में मन भटकता है, पर जब वे फिल्म-हॉल में फिल्म देखते हैं तो मन कहाँ भटकता है मन : चंचलता और स्थिरता/४९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy