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सो गति'। जीवन की अंतिम सांस में जैसे भाव होते हैं, आगामी जन्म में वैसा ही प्रतिफल प्राप्त होता है । मति मन की ही क्रिया है। इसलिए मन नरक की ओर भी ले जा सकता है और स्वर्ग की भी यात्रा करा सकता है । मृत्यु के समय मन की अशुभ प्रवृत्तियाँ जहाँ नरक का कारण बनती हैं, वहीं शुभ प्रवत्तियाँ स्वर्ग का | धर्म-जगत का अधिकांश संबंध मन के साथ ही जुड़ा हुआ है । मृत्यु-वेला में अशुभ भाव नरक के कारण बनते हैं और शुभ भाव स्वर्ग के | सहजतः कल्पना की जा सकती है कि अगर उस समय शुभ व अशुभ दोनों ही भावों को समाप्त कर दिया जाए तो उस यात्रा की मंजिल मोक्ष ही होगी । वास्तव में मन से मुक्ति ही मोक्ष है। ___ मन जिसे सदैव ही दबाने की कोशिश की गई, उसकी भावनाओं के साथ बलात्कार किया गया, उसे कुंठित करने का प्रयास किया गया, अगर उसे सही दिशा दिखाई जाती तो जो मन संसार का कारण है, वही समाधि का मूल भी बन सकता था । मन की शक्ति को आज तक कौन आंक पाया है । वास्तव में देखा जाये तो मन सर्वशक्तिमान है | इसमें ऊर्जा है, विद्युत प्रवाह है । आवश्यकता है इसके सदुपयोग की । __ मन न तुम्हारा शत्रु है और न ही मित्र | अगर यह कहा जाए कि हमारी अशुभ प्रवृत्तियों का कारण मन है, तो शुभ प्रवृत्तियों का कारण कौन है ? शुभ हो या अशुभ, दोनों ही प्रवृत्तियाँ मन से ही जुड़ी हुई हैं, इसलिए मन के साथ कभी शत्रुता नहीं रखनी चाहिए । उसे मित्र बनाओ; जोर-जबर्दस्ती उसके साथ न चलेगी । अगर यह चाहते हो कि मन वहीं रहे जहाँ मैं हूँ, मन वही करे जो मैं चाहता हूँ तो मन को प्यार दो, मन को प्रेम दो । पाओगे, अब तक जिस शक्ति का दुरुपयोग हो रहा था, वही शक्ति तुम्हारे हाथों में है |
मन की चंचलता जग-प्रसिद्ध है । प्रायः ऐसा ही होता है, जहाँ 'मैं' रहता है वहाँ से मन फरार हो जाता है | कई शिकायतें मेरे पास आती हैं, मन के बारे में | कहते हैं लोग, अगर हम मन्दिर जाएं तो मन मकान में जाता है । अगर माला गिनने बैठे तो मन मलाई में जाता है। दुकान जाएं तो मन कहता है, घर चलो और घर जाएं तो मन कहता है दुकान चलो । रूठा हुआ मन हमेशा वही काम करेगा, जिसे हम नहीं चाहते । काश्मीर में रहने वाला कन्याकुमारी जाकर समुद्र की लहरें देखना चाहता है, और कन्याकुमारी में रहने वाला काश्मीर आना
४८/ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ
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