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________________ मन चंचल है, इस बात से हम सभी परिचित हैं, अगर हम अपरिचित हैं तो इस बात से कि मन की चंचलता को कैसे शांत किया जाए । मन का शांत होना जीवन में अध्यात्म का प्रवर्तन है और मन का अशांत होना ही मनुष्य का सांसारिक भटकाव है । मन की चंचलता को समझने, और उसे शांत करने के लिए, ध्यान एक जीवन्त महामार्ग है । शांत और एकाग्र मन ही, आत्म-अनुभूति और परमात्म-अनुभूति में मददगार होता है, इसलिए ध्यान मन की शांति के लिए है, आत्मा की अनुभूति के लिए है, परमात्मा में डूबने के लिए है। महावीर शांत मन के धनी हैं । मन को शांत करने की बात कहते हैं । स्वयं के शुद्ध मन और सात्विकता का नाम ही महावीर के दृष्टि में सम्यग्दर्शन है । महावीर के सम्यग्चारित्र का सिद्धांत, वास्तव में इसी सम्यग्दर्शन की जीवन में अभिव्यक्ति है । __ महावीर मनस्वी पुरुष हैं । मनस्वी का अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति सदा मन के बारे में चिन्तन करता रहे । चिन्तन-मनन मनुष्य का धर्म है और इसी धर्म के सहारे मनुष्य ध्यान और समाधि में प्रवेश करता है । महावीर मन की उस दशा को ध्यान कहते हैं, जहाँ सर्वतोभावेन मन एकाग्रता की गुफा में प्रवेश कर जाता है | कहने में हम कह दें, महावीर ने अभिनिष्क्रमण, चारित्र-पालन के लिए किया था, या धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिए किया था, पर सच तो यह है कि उन्होंने जीवन में नया अध्याय इसलिए प्रारम्भ किया ताकि वे बाहर एकाकी होकर, भीतर से भी एकाकी हो सकें। महावीर का आज का सूत्र, साधना का सूत्र है | इस एक सूत्र के गर्भ में अनंत संभावनाएं समायी हुई हैं | ध्यान और साधना का सार है यह सूत्र। महावीर कहते हैं जं थिरमज्झवसाणं तं झाणं । स्थिर अध्यवसान अर्थात् मानसिक एकाग्रता ही ध्यान है | महावीर साधना मार्ग का स्वर्णिम सूत्र दे रहे हैं | ध्यान पर चर्चा करें उससे पूर्व, मन के संबंध में कुछ सोचें । आपने सुना है, 'अंत मति मन : चंचलता और स्थिरता/४७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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