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"ध्यान व्यभिचारी का भी होता है। और सही में इतना गहरा ध्यान होता है कि अगर उतनी गहराई से परमात्मा के प्रति जुड़ जाए, तो जीवन का काया-कल्प हो सकता है। व्यभिचारी ध्यान में जीता है, लेकिन यह अशुभ है । ध्यान का मतलब सिर्फ मानसिक एकाग्रता नहीं है। उन गलियारों से भी है जिससे होकर ध्यान में पहुँचा जाता
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