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________________ सुख मिट्टी का दिया है और आनंद महासूर्य है । जब सूर्य उगेगा, तब भला दिये कि क्या कीमत | सुख-दुःख और आनंद को यँ समझें.. आनंद चांद है, सुख मन की झील पर प्रतिबिम्ब है और प्रतिबिम्ब का खोना दुःख है । . सुख में प्रार्थना की जरूरत नहीं लगती है और दुःख में प्रार्थना करना तूफान में नौका चलाना है | सुख में प्रार्थना, शांत सागर में विहार है। दुःख में भगवान नहीं, दुःख याद आता है । भला जिसके सिर में दर्द है, वह ध्यान में सिर के दर्द को ही याद कर पाएगा । बीमार को बीमारी याद आती है । प्रार्थना हो फेहरिस्त, जिसमें इधर-उधर की अफरा-तफरी न होगी। इसीलिए मैं कहता हूँ ,परमात्मा आनंद स्वरूप है । आत्मा ही परमात्मा है । परमात्मा को इसी पल हासिल कर सकते हो । शेष किसी चीज को पाना हो तो दूसरे की आवश्यकता होगी । लेकिन समाधि को पाना हो, परमात्मा को पाना हो तो हमारे स्वयं के हाथ में है । परमात्मा को तो हर कोई हासिल करना चाहता है, लेकिन यह तो कुनकुना पानी है। कुनकुना पानी कभी वाष्प नहीं बना करता । जब तक १०० डिग्री तक पानी नहीं खौलेगा तब तक वाष्प नहीं बन पायेगा। यहां तो रत्ती-रत्ती समर्पित करनी होगी । परमात्मा के लिये, अपने आप के लिये । मैंने सुना है, कोई फकीर किसी सम्राट् से अकड़ गया । कहने लगा, परमात्मा हर किसी की रक्षा करता है । सर्दी का मौसम था, सम्राट ने फकीर को बांधकर नदी में खड़ा कर दिया । कहने लगा, 'देखें, परमात्मा कैसे तुम्हारी रक्षा करता है ।' दूसरे दिन फकीर वैसा का वैसा नदी से निकल आया । सम्राट ने सैनिकों से पूछा, 'यह फकीर ऐसे कैसे ठंड में खड़ा रहा ।' सैनिकों ने कहा, 'आपके महल पर जो दिया जल रहा था, उसी के सहारे खड़ा रहा ।' सम्राट ने कहा, 'फकीर ने धोखा दिया है। ठंड से इसकी रक्षा मेरे महल के दीपक ने की है, परमात्मा ने नहीं की। __फकीर चला गया । एक दिन फकीर ने दावत दी, सम्राट को आमंत्रित किया गया । सांझ पड गयी पर भोजन न मिला | सम्राट बैठा-बैठा बैचेन हो गया । उसने पूछा, 'भोजन में कितनी देर है !' फकीर ने कहा, 'अभी पक रहा है ।' 'कोई दो घंटे बीत गये । हर बार फकीर ने यही उत्तर दिया कि 'भोजन पक रहा है ।' सम्राट को परमात्मा : स्वभाव सिद्ध अधिकार/४३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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