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________________ नहीं है, सच्चिदानंद है । परमात्मा से दुःख ज्यादा दूर है और सुख ज्यादा निकट है । सुख के बाद आनंद का क्रम आता है । जिन्होंने सुख में खोजा परमात्मा को, उन्होंने पा लिया । यह तो आनंद में आनंद को ढंढना है । परमात्मा के द्वार पर भिखारी बनकर मत जाओ, मरघटी सूरत लेकर मत जाओ, गीत गाते जाओ, गुनगुनाते जाओ, नाचतेझूमते, उत्सव मनाते हुए, मीरा की तरह | जब ऐसे जाओगे, परमात्मा के द्वार पर रस झरेगा, बिन बाजे की झंकार बजेगी, बस एक बार समझ के साथ ध्यान में उतरना, डूबना, रमना, नाचना, झूमना - 'रस गगन गुफा में अजर झरे .. बिन बाजा झंकार उठे, जहां समुझि परौं जब ध्यान धरै ।' परमात्मा को पाना है, सत्य को उपलब्ध करना है, यह कांटा नहीं फूल है । कांटे की गड़न तो हर कोई समझ सकता है, लेकिन फूल की गड़न तो संवेदनशील ही जानते हैं । कांटे का तो शराबी को भी पता चल जायेगा, लेकिन फूल की संवेदना जागरूक ही कर पायेगा । यह तो सब कुछ न्योछावर करने का द्वार है | जो डूबेगा वही तो तिर पायेगा। भिखारी खाली हाथ लौट जायेगें और सम्राट् झोली भर लेंगे। दुखी बिना मांगे प्रार्थना कैसे करेगा | हर प्रार्थना में दुःख को दूर करने के भाव छिपे रहेगें | आदमी दुःख में सिकुड़ता है, सुख में फैलता है । दुःख में बोलना भी नहीं चाहता, दुःख में तो आत्मघात करेगा, कब्र में सोना चाहेगा, ताकि उससे कोई बोले नहीं | परमात्मा फैलाव है और आनंद फैलाता है | आनंद सुख से आगे की स्थिति है । सुख और दुःख तो दुनियादारी है । आत्मा का स्वभाव तो सुख-दुःख से मुक्ति है, सच्चिदानंद है | दुःख अंधेरा है, आनंद प्रकाश है । रोशनी आ सकती है अंधेरे में, अंधेरा रोशनी में नहीं जा सकता । अगर प्रकाश अंधेरे में आ भी गया तो भी लोग आंख बंद कर लेगें । प्रकाश का स्वागत नहीं कर सकेंगे। धरती पर प्रकाश तो कई दफे अवतरित हुआ है, फैला है । लेकिन अंधेरे में जीने वाले लोगों ने उसका अनादर ही किया है | कभी प्रकाश को शूली पर लटकाया गया, कभी कानों में कीलें ठोंकी गईं, कभी जहर का प्याला पीने को मजबूर किया गया और कभी गोली से उड़ा दिया गया । दुःख में जीने वाले लोग आनंद का स्वागत नहीं कर पाते । ४२/ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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