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________________ शंका हई। वह भीतर गया, देखा चल्हे पर पतीले में चावल रखे थे, पर आग नहीं जल रही थी। सम्राट ने पूछा, 'फकीर यह क्या ? 'फकीर ने कहा, 'वही आपके महल का दिया | हम उसी से इसे तपा रहे हैं, जिससे उस रात हम बचे थे ।' ___एक अंगारे से कुछ न होगा | अरविन्द कहा करते थे कि साधना के मार्ग में अभिप्सा चाहिए । जो सब कुछ दांव पर लगा सकता है, वही कुछ पा सकता है | जब सभी चाहें, किसी एक चाह में गिर जाती है, जैसे नदिया सागर में, तत्क्षण परमात्मा मिल जायेगा, समाधि सध जायेगी। ___ 'बूंद' को 'समुंद' होने के लिए समुन्दर में समाना होना | बूंद मिटे तो ही सागर है | अहंकार मिटे. तो ही सर्वकार प्रकट होगा । 'मैं' मिटे तो ही 'वह' जन्मेगा । 'मैं' 'पर' की दूरी मिटे, स्वयं में परमात्मा की आभा प्रगटे, यही प्रयास होने चाहिए । भगवान ऐसा ही करे । ४४/ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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