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करेन्सकी न्यूयार्क में एक दुर्घटना में मारे गये । पता चला कि वे इतने वर्षों से खिलौने की एक दुकान चला रहे थे । जिसने जीवन में कभी रूस की सत्ता संभाली थी, उसे खिलौने की दुकान चलानी पड़ी ।
प्रतिष्ठा तब तक साथ निभाती है जब तक सत्ता हो । इसलिये सत्ता और सम्पत्ति की प्रतिष्ठा को कभी स्थायी न समझ लेना । जो कभी देश | का प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बनता है, वह उसी देश में फांसी के फंदे पर, भुट्टो की तरह लटक जाता है । पता नहीं, इतिहास में अब तक कितने राजाओं को अपने बेटों के हाथों में मरना पड़ा । कइयों को खुदकुशी करनी पड़ी । यह सत्ता और संपत्ति का नशा तभी तक सवार रहता है, जब उसकी सुरा पास में हो । सत्ता हाथ से छिटकी और तिजोरियां खाली हुईं | एक करोड़पति कब रोड़पति बन जाये भरोसा नहीं, राजा रंक और रंक राजा बन जाता है ।
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मनुष्य धर्म की भी अपनी दुकानदारी चला रखी है । थोड़ा समय धर्म होता है, फिर वही दुकानदारी | धर्म हो सांस की तरह, जैसे सांस हर पल गतिमान रहती है, वैसे ही धर्म प्रतिपल जीवन में साथ रहना चाहिये | लोग मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे जा कर परमात्मा को याद करते हैं । लेकिन बाहर आकर परमात्मा को भी भूल जाते हैं और उसके सिद्धांतों को भी भूल जाते हैं, जब पैसा आंखों के सामने नाचने लगता है । व्यक्ति धर्म करके अकड़ता है, जबकि धर्म तो विनम्रता सिखाता है | अगर यह अकड़ गिर जाये तो परमात्मा स्वतः दिखाई देगा। परमात्मा विनम्रता की भाषा जानता है, अहंकार की नहीं । राम का अस्तित्व विनम्रता में है, रावण का अस्तित्व अहंकार में है । खुदी मिटी कि खुद प्रगट हुआ। परमात्मा को पाने के लिये केवल ममत्वमेरे पन का त्याग करना आवश्यक नहीं है । मैं का त्याग भी आवश्यक है ।
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है,
'तू बंदा नहीं, सचमुच खुद में खुदा बस हुआ एक नुक्ते से जुदा है ।
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वह नुक्ता तू खुद ही है मुजीद ! मिटा दे खुदी को, तू खुद ही खुदा है ।'
खुदी मिटी कि खुदा प्रगट हुआ । व्यक्ति स्वयं को बचाकर विकल्प को ढूंढ़ता है । फूल घर में नहीं उगाता, खरीद कर परमात्मा के चरणों
परमात्मा : स्वभाव सिद्ध अधिकार / ३९
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