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इसलिए जिन-दर्शन में अवतरण नहीं होता, ऊर्ध्वारोहण होता है । गंगासागर से गंगोत्री की ओर यात्रा होती है । गंगोत्री से गंगासागर की यात्रा तो मुर्दा भी कर सकता है । शिखर से तलहटी तक पत्थर भी लुढ़क सकता है । लेकिन गंगासागर से गंगोत्री की यात्रा वे ही लोग कर पाएंगे जो चेतना के धनी हैं । तलहटी से शिखर तक वे ही लोग पहुँच पाएंगे जिनकी चैतन्य शक्ति उजागर है । इसलिये महावीर इंसान को ईश्वर बना रहे हैं, आत्मा को परमात्मा बना रहे हैं, नर को नारायण और भक्त को भगवान बना रहे हैं ।
परमात्मा की खोज तो आवश्यक है । मैं यह भी नहीं कहता कि पढ़ी-सुनी बातों से प्रभावित होकर खोज शुरू कर दो, क्योंकि अगर स्वयं की प्यास नहीं होगी तो उस खोज में भी दृढ़ संकल्प नहीं रह पाओगे । परमात्मा की खोज भी प्यास से हो, बुद्धि के निर्णय से नहीं। अगर बिना प्यास के पानी भी उपलब्ध हो गया तो क्या करोगे पानी का । वह पानी भी बेकार रहेगा । पानी की सही कीमत तभी आंकी जा सकेगी जब सघन प्यास हो । कीमत पानी की नहीं, पानी के प्रति प्यास की है। अगर दुनिया में प्यास है तो निश्चित रूप से पानी भी होगा। अगर पानी न होता तो प्यास न होती और अगर परमात्मा न होता तो प्रार्थनाएं भी नहीं होतीं । जिसे जिस चीज की आवश्यकता ही न हो उसे वह चीज सौंपना, उसे गड्ढे में डालना नहीं तो और क्या है ? परमात्म-दर्शन और परमात्म-अनुभूति के लिये पहले प्यास जगाओ, फिर खोज प्रारंभ करो । दूसरा प्यास का बोध करा सकता है, लेकिन प्यासा नहीं बना सकता है | प्यास तो है स्त्रियों की और पहुँच गये मंदिर में । अगर ऐसा है तो वहाँ परमात्मा दिखाई न देगा केवल स्त्रियां ही दिखाई देंगी । परमात्मा के ध्यान में तो बैठ जाओगे, लेकिन मन अप्सराओं की ओर दौड़ेगा । पता है अनेक लोग मंदिर क्यों जाते हैं ? वे इसलिए जाते हैं कि मुकदमा न हार जायें । कोई इसलिये मंदिर जाता है कि उसे पत्नी मिल जाये, कोई पति की चाह में जा रही है तो कोई पत्नी की चाह में जा रहा है । परमात्मा की चाह तो खो गयी । एक व्यक्ति कहता था, 'आपके पास आने से मेरी दुकान अच्छी चलने लगी है ।' वह रोज आता है मेरे पास, २-३ घंटे तक बैठा रहता है । इस विश्वास के सहारे वह अपनी दुकान तो चला लेगा, पर मुझसे कुछ हासिल न कर पायेगा। मैंने सुना है, अमेरिका में एक प्रसिद्ध अभिनेत्री किसी चर्च में गयी।
परमात्मा : स्वभाव सिद्ध अधिकार/३७
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