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________________ कर्म से विमुक्त है, वही परमात्मा है । 'मैं तो बसों शहर के बाहर, मेरी पुरी मवास में ।' शहर यानि संसार, परमात्मा शहर- संसार में नहीं है । शहर के बाहर है, संसार से परे है । 'पूरी मवास में ।' परमात्मा का निवास स्थान मवास में है, अंतर के दुर्गम गढ़ में है | इसलिये वह व्यक्ति परमात्मा को नहीं पा सकेगा जो विश्व विजेता है, जिसने सैकड़ों किलों पर फतह का झण्डा गाड़ा है, वह अंततः पराजित हो जाता है, अपने आपसे । सैकड़ों दुर्गम किलों पर विजय प्राप्त करने वाला अपने गढ़ के सामने आत्म-समर्पण कर देता है | __ सिकंदर जब मृत्यु शैय्या पर सोया हुआ था उसने अपने सभासदों को आदेश दिया, 'जब मैं मर जाऊँ तो मेरी कब्र पर मेरा परिचय यह खुदवा देना कि; वह सिकंदर, जो सारे संसार को जीत कर अन्त में अपने आपसे हार गया ।' दूसरों को जीतने में सच्ची विजय नहीं है, सच्ची विजय तो अपने आपको जीतने में हैं । वह जीत भी क्या हुई, जिसमें व्यक्ति अपने आप से हार गया । दूसरों को जीतने में तो मानवता लहूलुहान हो जायेगी और अपने आप को जीतने से तो अस्तित्व पर अमृत की वर्षा होगी । जब अभीप्सा की आग जलेगी, तब अमृत की वर्षा होगी । इसलिए कबीर ने कहा 'मेरी पुरी मवास में ।' अपने अंतर में है परमात्मा का निवास स्थान | 'सब सांसों की सांस में: हर: सांस, परमात्मा की सांस है | काश ! संसार इसे स्वीकार कर पाये । महावीर परमात्म तत्त्व को उजागर करने का सूत्र दे रहे हैं । 'अप्पो वीय परमप्पो' आत्मा ही परमात्मा बन जाता है । श्रमण संस्कृति को छोड़कर सभी धर्म-दर्शन अपने आपको परमात्मा में खो देने की प्रेरणा देते हैं । लेकिन महावीर स्वयं परमात्मा होने का पाठ पढ़ाते हैं । इसलिये जब राम और कृष्ण धरती पर अवतरण लेते हैं तब उसे अवतरण कहा जाता है । वे ईश्वर से इंसान बनते हैं | जबकि महावीर का दर्शन इंसान से ईश्वर की यात्रा हैं । वहाँ ईश्वर इंसान बनकर अपनी ऐश्वर्य शक्ति नहीं दिखाता, अपितु इंसान अपने भुजाओं के बल पर यात्रा करता हैगंगासागर से गंगोत्री की ओर, तलहटी से शिखर की ओर । यह सत्य की खोज है, शिखर की यात्रा है और उद्गम तक पहुँचना है । इस यात्रा में वे ही लोग सफल हो पायेगें जो महावीर और बुद्ध की तरह कृत संकल्प होंगे तेनसिंह और हिलेरी की तरह अपनी भुजाओं पर विश्वस्त होंगे। ३६/ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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