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________________ कबीर का यह पद महावीर के सूत्र का ही विस्तार है, महावीर कहते हैं, 'अप्पा सो परमप्पा' और कबीर कहते हैं, 'सब सांसन की सांस में।' परमात्मा को खोजने के अब तक कितने उपाय किये गये । जितने धर्म, दर्शन और सम्प्रदाय चले, सबके सब परमात्म-दर्शन के नाम पर चले। कबीर कहते हैं, मैं तो तेरे पास में | महावीर के भावों को कबीर ने अपने शब्दों में अभिव्यक्त किया है और उन लोगों को सन्देश दिया है, जो बकरे और भेड़ की बलि देकर परमात्मा को पाना चाहते हैं | धूप-दीप जलाये, भेड़-बकरियों की बलि देकर धरती को लहूलुहान किया, लेकिन परमात्म दर्शन तो दूर उसकी अनुभूति तक नहीं हो पायी | आदमी पाना चाहता है खुद और बलिदान देना चाहता है दूसरों का | अपनी उपलब्धि के लिए दूसरों की कुर्बानी ? यह सब कुछ धर्म के नाम पर मानवता का गला घोंटना नहीं तो और क्या है ? देवी-देवताओं को खुश करने के नाम पर आदमी स्वयं को बचाता है, दूसरों को चढ़ाता है । आज भी आदमी में आदमीयत नहीं आयी । आदम युग की तरह हिंसक प्रवृत्तियों के माध्यम से व्यक्ति देवी-देवताओं को खुश करना चाहता है, परमात्मा को पाना चाहता है । कबीर कहते हैं, 'ना मैं बकरी, ना मैं भेड़ी, ना मैं छुरी गंडास में ।' ___ कहाँ खोज रहे हो परमात्मा को | क्या बकरी में परमात्मा को ढूंढ रहे हो ? भेड़ों का गला काट कर परमात्मा का दर्शन करना चाह रहे हो ? अपनी उपलब्धि के लिए अपना बलिदान आवश्यक है । बकरी को काटने से शायद बकरी पाले, लेकिन हम नहीं पा सकेगें । व्यक्ति छुरी को रगड़ रहा है, धार तेज करने के लिए । लेकिन छुरी की धार में परमात्म-दर्शन नहीं होगा। 'नहीं खाल में, नहीं पँछ में न हड्डी न मांस में ।' कबीर ने बडी गहरी बात कही है । वे फकीर भी हैं, संत भी है, मौलाना भी हैं, पण्डित भी हैं | कबीर बात पत्ते की उठा रहे हैं । परमात्मा न खाल में है, न हड्डी में है, न मांस में है | आखिर लोग इनकी बलि क्यों दिये जा रहे हैं ? परमात्मा न मंदिर में है, न मस्जिद में है, न काबा में है, न कैलाश में, वह तो अपने आप में है । अगर मंदिर या मस्जिद में भी ईश्वर अल्लाह को ढंढा तो वहां भी परमात्म-तत्त्व को अपने आप में ढंढना पड़ेगा । जैसे गाय के चित्र को देख कर गाय का बोध हो सकता ३४/ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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