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________________ में चलें, मैं आपको वे सारी सुविधाएँ दूंगा , जिनकी आपको आवश्यकता होगी ।' ___ अनाथी मस्कराये और बोले. 'राजन ! जो स्वयं अपना नाथ नहीं है, वह भला औरों का नाथ कैसे हो पायेगा । जिन लोगों के बीच तम घिरे हो, जिनसे तुम्हारी लालसा और वितृष्णा है और जिनसे तुम सम्मोहित हो, वे सब तब तक तुम्हारा साथ निभाने वाले हैं, जब तक तुम्हारे पास सत्ता और सम्पत्ति है | आज तुम सबके नाथ कहलाते हो। याद रखो जब पिंजरे से पंछी उड़ जायेगा, तब न तुम किसी के नाथ रहोगे न तुम्हारा कोई नाथ रहेगा । तुम अनाथ रहोगे, निपट अकेले । ___ आज के सूत्र में हम महावीर के आत्म-दर्शन और परमात्म-दर्शन पर ही चर्चा करेंगे । महावीर का दर्शन, आत्म-दर्शन है । उनके सारे सूत्र आत्म-अनुभूति के लिए हैं । वे बहिरात्मपन से छुटकारा दिलाना चाहते हैं, अन्तरात्मा में आरोहण करना चाहते हैं और परमात्म ध्यान करवाना चाहते हैं। ___ भारतीय संस्कृति में ईश्वर खोज की के मुख्यतः दो ही मार्ग रहे हैं-भक्ति और ध्यान । भक्ति में ईश्वर की खोज बाहर की जाती है और ध्यान में भीतर । भक्ति गाँव-गाँव जायेगी, तीरथ-तीरथ जायेगी और पत्थर में भी परमात्मा को ढूंढने की कोशिश करेगी । उसकी प्यास तब तक नहीं बुझ पायेगी, जब तक पत्थर की मूरत में परमात्मा की सूरत न दिखा दे जाये मन्दिर-मन्दिर मूरत तेरी, फिर भी न दीखे सूरत तेरी, युग बीते, न आई मिलन की पूरणमासी रे। दर्शन दो घनश्याम, नाथ मोरी अखियाँ प्यासी रे । भक्ति में प्यास रहती है, एक सघन प्यास और ध्यान, भक्ति-मार्ग की चरम अवस्था का ही परिणाम है | मन्दिर-मन्दिर में खोजते हुए, मन मन्दिर की ज्योति का दर्शन हो जाता है । ध्यान का मार्ग अन्तर्जगत का मार्ग है। परमात्मा को भी अपने आप में ढूंढने का मार्ग है । आत्मा ३२/ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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