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________________ नहीं, अपितु भीतर की खोज हो । परमात्म खोज के नाम पर अब तक जितनी यात्राएँ की गयीं, वे सब बाहर की यात्राएँ थीं और परमात्मा तो अन्तर्-जगत में है । या यं कहें जो ढंढ रहा है, वही परमात्मा है । परमात्मा द्वारा परमात्मा की खोज की जा रही है । मैंने कहा, परमात्मा द्वारा परमात्मा की खोज, यानि अपने आपकी खोज । इसे खोज़ भी न कहें, यह तो आत्म-बोध है, आत्म-दर्शन है । कुन्द-कुन्द ने तो ऐसे लोगों के हाथ से निर्वाण का अधिकार ही छीन लिया, जो आत्मबोध और आत्मदर्शन से शून्य हैं । इसलिए मोक्ष पाहुड़ में न परमात्मा की शरण स्वीकार की गयी है, न किसी देवी-देवता की । वहाँ कुन्द-कुन्द कहते हैं, 'अप्पाहू मे शरणं' आत्मा ही मेरा शरण है । इस दुनिया में कोई किसी का शरण भूत नहीं है | कोई किसी का नाथ नहीं है, व्यक्ति स्वयं ही अपना नाथ बनता है । श्रमण अनाथी, नगर के बाहर उपवन में थे । युवा अवस्था, भरपूर चैतन्य-शक्ति और ऊर्जा का आध्यात्मिक प्रयोग, वर्षों की साधना को घन्टों में पूर्ण कर रहे थे । एक दिन उपवन में सम्राट श्रेणिक पहुँचा । मुनि के दमकते चेहरे और उभरते यौवन से श्रेणिक विस्मय-विमुग्ध हो गया । सोचने लगा, यह यौवन, यह सौन्दर्य भोग के लिए है या योग के लिए । संन्यासी होने का अर्थ यह तो नहीं है कि जीवन के साथ ही अन्याय किया जाए। श्रेणिक मुनि के पास पहुँचा, पूछा 'इस तरह युवावस्था में गृह-त्याग कर संन्यास अपनाने की सार्थकता क्या है ? मुनि ! यह यौवन जो वासनाओं के भार से दबा रहना चाहिए तुम उसे क्षीण कर रहे हो ।' __ मुनि ने कहा, 'नहीं ! मैं ऊर्जा का सदुपयोग कर रहा हूँ | वह व्यक्ति भला साधना की पराकाष्ठा को कैसे छू पायेगा, जो यौवन संसार को सौंपता है और बुढ़ापा परमात्मा को । राजन् ! जितनी ऊर्जा भोग के लिए चाहिए, उससे सौ गुनी ऊर्जा योग के लिए आवश्यक है ।' सम्राट् सकपका गया । पुछने लगा 'मुनिवर ! क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ ।' मुनि के कहा 'अनाथी ।' 'अनाथी ! बड़ा विचित्र नाम है । मुनिवर ! अगर इस दुनिया में आपका कोई नाथ न हो तो मैं होने को तैयार हूँ | आप मेरे साथ महलों परमात्मा : स्वभाव सिद्ध अधिकार/३१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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