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पाओगे और मूल स्रोत तो आखिर हम ही हैं और जिस दिन यह अणु
और अदृश्य उड़ जायेगा, उस दिन वह सब कुछ, जो आज देख रहे हो एक पिंजरा भर होगा, खाली पिंजरा जिसे मुर्दा कहकर फंक दिया जायेगा, दफना दिया जायेगा । ___लोग आत्मा की पहचान नहीं कर पाते और सारी जिन्दगी संसार के लिए खो देते हैं और जैसे खुद हैं वैस ही अपना परमात्मा बना लेते हैं । जो शाकाहारी है, उसने अपना ईश्वर शाकाहारी बना लिया और जो मांसाहारी है, उसने अपना ईश्वर मांसाहारी बना लिया । परमात्मा पर भी अपनी आकृति का आरोपण कर दिया । अगर संसार भर की जितनी मूर्तियाँ हैं, जितने ईश्वर के भेद-विभेद हैं उनका निर्माण कार्य पशु-पक्षियों के हाथ में सौप दिया जाता है तो जितने भगवान के चेहरे होते हैं सब पशु-पक्षियों से मिलते जुलते होते । पता नहीं ईश्वर ने इंसान को बनाया या नहीं, लेकिन इंसान ने तो अपना ईश्वर बना ही लिया । अपने ईश्वर को बाहर निर्मित न करें, अपने बनाये हुए परमात्मा की प्रार्थना न करें, क्योंकि वहाँ सारी-की-सारी प्रार्थनायें संसार की होंगी, अगर करनी है प्रार्थना तो उसकी करो, जिसने तुम्हें बनाया है । अन्यथा, ध्यान में भी बैठोगे तो वहाँ ध्यान में भी परमात्मा नहीं पति आयेगा, अगर माला गिनने बैठोगे तो भगवान नहीं भोग आएंगे। ___ मैं आबू में था । ध्यान साधना के लिए वहाँ तीन माह की स्थिरता थी, काफी विदेशी लोग भी ध्यान का अभ्यास करने आते थे । एक दिन, इटली का एक जोड़ा हमारे पास बैठा था । दोनों ने कहा, हम इटली में भी रोज आधा घंटा ध्यान करते थे । हम दोनों की सर्विस अलग-अलग स्थानों पर है तथा २०० कि. मी. की दूरी पर है। ___ मैंने कहा, सो तो ठीक है, पर जरा यह बतायें कि आप दोनों आधे घंटे तक ध्यान में क्या करते हैं ? पत्नी ने अपने पति की ओर इशारा करते हुए कहा, ये मुझे याद करते हैं और मैं इन्हें याद करती हूँ। - इस घटना पर हँसी भी आ सकती है, लेकिन यह एक की नहीं, सबके जीवन की आपबीती है । अब तक हमारी ओर से किया जाने वाला ध्यान योग, ऐसे ही हुआ है । दिखने में लगता है, व्यक्ति परमात्मा का चिन्तन कर रहा है, पर वहाँ परमात्म-चिन्तन के नाम पर पति-पत्नी का चिन्तन चलता है।
परमात्म तत्त्व की खोज आवश्यक है, पर यह खोज बाहर की खोज ३०/ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ
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