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________________ घंटे पहरा देगा, दो सोयेंगे, एक जगेगा । पोपट राम के मित्रों में एक नाई था, दूसरा गंजा । सबसे पहले नाई पहरा देने के लिये खड़ा हुआ, शेष दोनों सो गये | नाई अकेला खड़ा-खड़ा तंग आ गया और कुछ न सूझा । वह पोपट राम के पास गया और उसका सिर मंडन करने लगा। ___ जब तीन घण्टे बीत गये, नाई ने पारी बदलने के लिये पोपट राम को उठाया । उसने सिर पर हाथ फेरा, बोलने लगा, मूर्ख तू ये क्या कर रहा है तुमने मेरी जगह उस गंजे को उठा दिया है। लोग अपनी पहचान भी बाहर से कर रहे हैं, औरों से कर रहे हैं और इस बाहर की खोज में परमात्मा को भी बाहर ही खोजने लगे हैं। अमृत भीतर है, खोज बाहर चल रही है | भीतर की तो स्मृति भी नहीं है । दशों दिशाओं की तो सभी चर्चा किया करते हैं, लेकिन ग्यारहवीं की चर्चा कोई नहीं करता । मेरा इशारा इसी दिशा की ओर है | इसे अपनी दिशा कहें । कोई कहता है परमात्मा उत्तर में है, कोई कहता है दक्षिण में है, कोई कहता है पूर्व या पश्चिम में है; हकीकत में तो परमात्मा वहाँ है, जहाँ सभी दिशाएँ गौण हो जाती हैं, वह है अन्तर-दिशा। जो जिस दिशा में है उसकी खोज उधर ही होनी चाहिए। गंगा का मूल उत्स खोजने के लिए, अगर व्यक्ति दक्षिण की ओर अपनी यात्रा प्रारम्भ करता है तो उसकी खोज पूरी न होगी । गंगा का उत्स उत्तर में है, गंगोत्री में है । अगर अपनी जीवन-धार का उत्स खोजना चाहते हो, तो वह तम्हारे भीतर है, हमारी गंगोत्री हमारे भीतर है, जहाँ से बही है जीवन की धारा | माता-पिता से हमें जन्म मिला है, जीवन नहीं। चाहे सौ नाले गंगा में आकर मिल जायें, लेकिन वे गंगा के आदि स्रोत नहीं हो सकते । गंगा का आदि स्रोत तो गोमुख ही कहलायेगा। ___ आज हम पूरे शरीर में हैं । इससे पहले छोटे शरीर में थे । उससे पहले और भी छोटे शरीर में थे । जब माँ के पेट में थे तब और भी छोटे थे । कभी ऐसा भी था जब माँ के पेट में मात्र अणु थे । अणु से पूर्व के इतिहास को जानना चाहोगे ? अणु से पूर्व भी हमारा अस्तित्व था । हम एक अदृश्य आत्मा थे । ये जितना, जो कुछ दिखाई दे रहा है यह अणु और परमाणु की विराटता है । कल्पना की जा सकती है बिना बीज के क्या वृक्ष का अस्तित्व हो पायेगा ? अगर अपने जीवन के अतीत की ओर झांकोंगे, तो स्वयं को छोटे से छोटा, अन्त में अदृश्य परमात्मा : स्वभाव सिद्ध अधिकार/ २९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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