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________________ चाहिये, लेकिन अपने आप से जुड़ने के लिये ! वहां किसी आधार की आवश्यकता नहीं है । कमरे में बैठे हो, अंधेरा है, अगर किसी भी वस्तु को ढंढना हो तो प्रकाश की आवश्यकता होगी, अगर अपने आप को ढूंढना हो तो ? अन्धेरे में भी स्वयं का पता रहता है कि मैं हूँ | आंख बाहर खुलती है , इसलिये हम उसे भी बाहर ढंढ रहे हैं, जो बाहर है ही नहीं | छोटे दुःख को मिटाने की तरकीब बड़ा दुःख है, जैसे कोई बच्चा फोड़े के दर्द से कराह रहा है, इसी बीच चलते हुए गिर जाये, हाथ की हड्डी टूट जाये तो बच्चा फोड़े के दर्द को भूल जायेगा और हड्डी का दर्द उस पर प्रभावी हो जायेगा । ठीक ऐसे ही चेतन पर जड़ प्रभावित है । आत्मा पर पुद्गल प्रभावित है । चले थे परमात्मा को ढंढने, फोंड़े का इलाज कराने, संसार में फंस गये, परमात्मा को भूल गये, हड्डी टूट गई, फोड़े को भूल गये । इंसान बाहर की दौड़ में लगा है । कितने लोग ऐसे हैं जो परमात्मा को या अपने आप को पाना चाहते हैं। कहने में भले ही कह देंगे कि हम परमात्मा का दर्शन करना चाहते हैं , लेकिन मायाजाल के सामने परमात्मा भी गौण हो जाता है । एक ओर रुपये मिलते हैं, दूसरी ओर परमात्मा मिलता हो, तो लोग लाख की ओर लपकेंगे ,परमात्मा की ओर नहीं । भले ही जिन्दगी भर कहते रहे, मुझे परमात्मा का दर्शन करना है, लेकिन जब किसी ने कहा, चलो परमात्मा दिखा दूँ तो कहने लगे, ठहरो, लड़का बाहर गया है, वह आ जाये, उसे दुकान संभलवा कर चलता हूँ | आसक्ति जड़ की, लगाव पुदगल का, सम्मोहन संसार का, चेतना का सब कुछ तो जड़ के लिए न्यौछावर कर बैठे हो । बाहर की दौड़ बाहर के उपकरणों से तादात्म्य बनाती है, अन्तर् की दौड़ अन्तर् से । तलाश कर रहे हो अन्तर् की और दौड़ रहे हो बाहर। ठीक उल्टी यात्रा । और तो और व्यक्ति अपनी शक्ल भी आइने में देखकर पहचान पाता है ? अपनी पहचान का भी माध्यम कोई और? दूसरे के द्वारा स्वयं को अच्छा कहे जाने पर, स्वयं को अच्छा समझ लेते हैं । स्वयं का परिचय भी दूसरों पर आधारित हो गया है । ___ मैंने सुना है, पोपट राम अपने दो दोस्तों के साथ तीर्थयात्रा पर निकला। नाम की तीर्थयात्रा थी, निकला तो घूमने-फिरने ही था | एक दिन चलते-चलते जब कोई गाँव न आया, सांझ ढल गई तो जंगल में ही रात्रि विश्राम करना पड़ा । तीनों ने निर्णय किया कि प्रत्येक तीन-तीन २८/ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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