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________________ करेंगे। मरने के बाद उनकी याद में आँसू बहायेंगे । जीते-जी माता - पिता T को रुलाते हैं, लेकिन मरने के बाद स्वयं रोते हैं । कई दफा सोचा करता हूँ, कि जब परमात्मा इंसान के भीतर है तो उसे याद क्यों नहीं आती । हकीकत में स्मृति वियोग होने पर आती है । पत्नी को पति के मूल्य का तब तक अहसास नहीं होता जब तक वह उससे दूर न हट जाये ।.. 1 पुत्र विदेश में रहता है | उसकी याद में माँ आँसू बहाती रहती है, लाखों शुभकामनाएँ करती रहती हैं । लेकिन मिलन होने पर स्थिति सामान्य हो जाती है । इसलिए जो अहसास संयोग में है, उससे भी ज्यादा वियोग में होता है, क्योंकि यहां एक दूजे की स्मृति है, याद है। 1 मछली सागर में रहती है, वर्षों वर्षों से रहती है, लेकिन उसकी नजरों में पानी की कीमत का अहसास नहीं है । हमारे जीवन के लिए जैसे ऑक्सीजन आवश्यक है, उसी प्रकार मछली के लिए पानी आवश्यक है । अगर ऑक्सीजन समाप्त हो जाये तो इंसान का अस्तित्व नहीं रहेगा । लेकिन मनुष्य को ऑक्सीजन के महत्व का अहसास नहीं है और मछली को पानी का । क्योंकि दोनों ने जन्म से पाया है, इसलिए इसका महत्व नहीं समझ पाये । हमेशा अमृत पीने से, अमृत भी पानी बन जाता है । मनुष्य अमृत के लिये इसलिये तरस रहा है, क्योंकि वह उसके पास नहीं है और देवताओं के लिए अमृत की कोई कीमत नहीं है, क्योंकि वह तो उन्हें उपलब्ध है । जिस ताजमहल को देखने के लिए दुनिया भर के लोग आगरा पहुँचते हैं, कभी आगरा वासियों को पूछो, बहुत से लोग ऐसे मिल जायेंगे जिन्होंने कभी ताजमहल ही न देखा हो । वे कहते हैं ताजमहल क्या है, मकबरा है | लोग हरिद्वार और वाराणसी में गंगा स्नान करने जाते हैं और वहां रहने वाले लोग अपने ही घर में, बाथरूम में स्नान करते हैं । मनुष्य ऑक्सीजन की कीमत तब आंक पायेगा जब उसके अभाव में वह तड़के | मछली पानी की कीमत तब आंक पायेगी जब उसे पानी से अलग कर दिया जाये। जैसे जीवन के लिए ऑक्सीजन, मछली के लिये पानी, उसके अस्तित्व से जुड़ा हुआ है, वैसे ही परमात्मा हमारे अस्तित्व से जुड़ा है | परमात्मा का कभी वियोग नहीं हो सकता। जहां योग होता है, वहां वियोग होता है, जहां वियोग होता है, वहां योग होता है । परमात्मा २६ / ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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