________________
सिद्धत्व हमारा स्वभाव सिद्ध अधिकार है । न केवल अधिकार है, स्वभाव भी है | आत्मा न मन है, न वचन है, न काया है ; आत्मा सिर्फ 'आत्मा' है । निरालम्ब है, निष्कलुष है, निर्दोष है; मोह-रहित, भयमुक्त, वीतराग है । क्रोध, वैमनस्य, घृणा ये सब आत्मा के व्यक्तित्व नहीं हैं । राग और द्वेष ये सब आरोपित हैं । खौलता हुआ पानी हाथ जला सकता है, लेकिन अग्नि को नहीं जला सकता । पानी का स्वभाव उष्णता नहीं, शीतलता है | चाहे जितना खौलता पानी अग्नि में डाला जाये, वह अग्नि को बुझाने में ही सहायक होगा, जलाने में नहीं । चाहे अग्नि में खौलता पानी डाला जाये या ठण्डा पानी, दोनों ही अग्नि को शान्त ही करेंगे।
यहां जल का स्वभाव शीतलता है, गरमाहट आरोपित है । शीतलता वास्तव में निर्भयता, वीतरागता, निष्कलुषता की प्रतीक है, जबकि गरमाहट क्रोध, वैमनस्य, सांसारिकता आदि की प्रतीक है। ___ सिद्धत्व का अर्थ भगवत्ता से है, हमारे परमात्म-स्वरूप से है । बहुत से लोग ऐसे हुए, जिन्होंने परमात्मा की खोज के लिये सारे संसार में तलाश की, लेकिन उन्हें हताश होना पड़ा । जो कभी खोया हो, उसे खोजा जाता है | बगल में बच्चे को रखकर, नगर भर में उसे ढंढना बेकार की परेशानी नहीं तो और क्या है ? जिसे खोया ही नहीं, उसे खोजोगे कैसे ? यह खोजने की यात्रा तो ठीक वैसे ही हुई, जैसे मृग कस्तूरी को ढंढने के लिये चारों ओर भटकता है, लेकिन अन्ततः कस्तूरी वहीं मिलती है, जहां से उसने खोजना प्रारम्भ किया था । परमात्मा भी आखिर वहीं मिलेगा जहां हम स्वयं हैं, जहां से हमने यात्रा प्रारम्भ की।
परमात्मा की खोज कम करनी है, केवल याद भर करना है । ऐसा नहीं है कि हमारे भीतर केवल आत्मा ही हो, परमात्मा भी है । हकीकत में तो आत्मा ही परमात्मा है । पर जिसे सदा से पाया है उसकी याद नहीं आया करती । किसी व्यक्ति का महत्त्व तब स्वीकार किया जाता है, जब वह दूर हो जाता है । लोग जीते-जी मां-बाप की सेवा नहीं
परमात्मा : स्वभाव सिद्ध अधिकार/२५
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org