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के चारित्र नहीं सधता । ज्ञान केवल ऊपर-ऊपर का न हो । जो ऊपर-ऊपर तैरेगा वह तिनके ही पायेगा | जो गहरे में उतरेगा वही हीरे-मोती पाएगा| जैसे सागर में ऊपर-ऊपर तैरने वाला सिवा खारे जल और तिनकों के कुछ प्राप्त नहीं कर पाता, वैसे ही केवल किताबों में रहने वाला जीवन की भाषा नहीं सीख पाता । किताबें हमें पंडित बना सकती हैं, लेकिन जीवन की वास्तविकता मात्र पांडित्य या तर्क-वितर्क में नहीं है, वह तो जीवन की निर्मलता में है | पुस्तकें प्रेम-सूत्र बता सकती हैं, लेकिन प्रेम पैदा नहीं कर सकती । परमात्मा कभी पूस्तकों में पैदा नहीं हुआ है, उसे पैदा करने के लिए प्रेम की माटी चाहिए
प्रेम की माटी में परमात्मा का फूल खिलता है, और प्रेम, डेल कार्नेगी की किताव में नहीं मिलता है । जो घर फँकता है, साथ हो जाता है,
और गाता है खुद में रमण करता है, खुदा हो जाता है, कबीर की साखी कोई और नहीं, खुद कबीरा है, वही मंसूर है
वही मीरा है । महावीर के यहाँ जो कुछ सीखा कहा जा रहा है, सब का सम्बन्ध अन्तर्-जगत से है।
एम.ए. तो हर कोई उत्तीर्ण कर सकता है, लेकिन जीवन की वास्तविकता,एम ए एन मैन ,होने में है । यदि कोई, शैक्षणिक उपाधियाँ पाकर, मानव नहीं बन पाया तो उसकी शिक्षा अपूर्ण कहलायेगी । बिना चारित्र का ज्ञान शून्य है और ज्ञान के अभाव में चारित्र शून्य है ।
महावीर का मौलिक मार्ग/१९
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