SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्य का आचरण कैसा ! ज्ञान ही तो वह आधार है जिससे व्यक्ति स्वयं में, स्वयमेव प्रवेश कर जाता है । इसलिए दुनिया में गुरु का सहारा लिया जाता है, ताकि हम ज्ञान हासिल कर सकें । गुरु चारित्र नहीं देता, गुरु ज्ञान देता है । वह संदेश, जिससे वेश परिवर्तन नहीं जीवन परिवर्तन हो जाये | इसलिए ज्ञान और गुरु का परस्पर अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है । केवल चोटी सौंपकर किसी को गुरु नहीं बनाया जाता है। चोटी हर कोई उतार सकता है, लेकिन अपनी प्रज्ञा से दूसरों की प्रज्ञा जाग्रत करना कठिन कार्य है । गुरु वह है जो ऐसा करने में सिद्धहस्त है । वह प्रकाशवाही बनकर शिष्य को मार्ग दिखलाता है । गुरु ज्ञान का दाता होता है । इसका अर्थ यह नहीं कि जो शास्त्रों का अभ्यास करवाए वह गुरु है । साधना के मार्ग में गुरु वह है जो स्वयं के अस्तित्व का बोध करवाए । जो अपना दीप भी जलाए और औरों का भी । महावीर जिस ज्ञान की चर्चा कर रहे हैं, साधना के मार्ग में वह आत्मज्ञान है । आत्मज्ञान के अभाव में, मुनि का मुनित्व ही त्रिशंकु में लटकता रह जाएगा । आनन्दघन ने महावीर के भावों को काफी ईमानदारी से पेश किया है - आतमज्ञानी श्रमण कहावे, बीजा तो द्रव्य लिंगी रे | महावीर कहते हैं' ‘नाणेण विणा न हुंति चरण गुणा' ज्ञान के अभाव में चारित्र गुण नहीं होता । ज्ञान आत्मा का स्वभाव है और जब तक आत्मा अपने स्वभाव को उजागर नहीं करेगी, तब तक अपना बोध भी कैसे कर सकेगी । महावीर ने तो यहाँ तक कहा है 'जे आया से विन्नाणी, जे विन्नाणी से आया' जो आत्मा है वही ज्ञान है और जो ज्ञान है, वही आत्मा है। एक अज्ञानी, वर्षों तक चारित्र का अनुपालन कर कर्मों का क्षय करता है वहीं, एक ज्ञानी क्षण भर में उन्हीं कर्मों का क्षय कर देता है । ज्ञानी और अज्ञानी के चारित्र पालन में यही फर्क है कि ज्ञानी चाबी से ताले को खोलता है और अज्ञानी हथौड़े से । अज्ञानी मासक्षमण करके भी क्षमा में नहीं जी सकता, वहीं ज्ञानी बिना व्रत, उपवास के ही, क्षमा और समता में जीवन यापन करता है । मासक्षमण चारित्र नहीं है, चारित्र क्षमा है । मासक्षमण भी क्षमा में, समता में जीने का अभियान है, अगर यह अभियान सफल नहीं होता है तो व्रत, उपवास, सभी कुछ साधना मार्ग में मात्र देह दंडन तक सीमित हो जाएँगे । १६ / ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy