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________________ का सीधा-सा अर्थ हुआ-'एक्सेप्ट बाई सेल्फ' सत्य को स्वीकार करना । ज्ञान और चारित्र को सम्यग् करने के लिए, ऐसा होना आवश्यक भी है । ऐसा होने पर अन्धानुकरण की बजाय अनुसन्धान होगा और जिन-दर्शन, अन्धानुकरण नहीं खोज का मार्ग है । यहाँ जितनी खोज की जायेगी, तथ्य उघड़ते जायेंगे । ___ मात्र वेश-परिवर्तन या शास्त्रीय ज्ञान से जीवन-परिवर्तन नहीं हो सकता । ज्ञान का सम्बन्ध बुद्धि से है, चारित्र का सम्बन्ध शरीर से है जबकि दर्शन का सम्बन्ध हृदय से है | बिना हृदय के शरीर और बुद्धि किस काम के ? वहाँ जो कुछ होगा, विश्वास हो सकता है, श्रद्धा नहीं हो सकती । बच्चे को परखनली में पैदा करना अलग बात है और नौ माह गर्भ का भार वहन कर बच्चे को पैदा करना अलग बात है | विश्वास का सम्बन्ध देह से है और श्रद्धा का दिल से । महावीर दिल की भाषा में बोल रहे हैं । वे हृदय से हृदय के तार जोड़कर व्यक्ति को हार्दिक बना रहे हैं । आखिर सृष्टि के सम्पूर्ण अस्तित्व को आत्मसात् करना ही तो सम्यग्दर्शन है। __ अस्तित्व में जहाँ-जहाँ सत्य की सम्भावनाएँ हैं, वहाँ-वहाँ गहरे तक उतरना, सत्य के करीब पहुँचना है। कुछ तथ्य शास्त्रों से समझे जाते हैं, कुछ बातें गुरु से जानी जाती हैं, लेकिन यहाँ कुछ ऐसा भी है जो शास्त्र या गुरु से नहीं, अपने आप से जाना जाता है । मैं कौन हूँ-इसका जवाब गुरु या शास्त्र नहीं दे पाएँगे | अगर देंगे तो भी यह उधार होगा, यहाँ श्रद्धा नहीं विश्वास होगा । विश्वास टूट भी सकता है लेकिन श्रद्धा कभी टूट नहीं सकती। इसलिए मैं कौन हूँ का जवाब भी स्वयं से पूछे। महावीर जिस सत्य के अनुसन्धान की बात कर रहें, वह सत्य बाहर नहीं भीतर है । इसलिए उचित यह होगा कि हम शास्त्रों की बजाय अपने-आप में ढूँढें, अपने अस्तित्व को | इस अनुसंधान को भले ही महावीर ने दर्शन कहा हो, बुद्ध ने श्रद्धा और शंकर ने श्रवण कहा हो, आखिर तीनों ही सत्य पर विश्वास से पूर्व उसका अहसास कराना चाहते हैं । ज्ञान से पूर्व, दर्शन-विशुद्धि हो। बिना दर्शन के, ज्ञान सम्यग नहीं होता, ठीक वैसे ही जैसे बिना शक्कर के दूध मीठा नहीं होता । ___दर्शन विशुद्धि के पश्चात् महावीर चाहते हैं ज्ञान भी निर्मल हो, क्योंकि ज्ञान के अभाव में चारित्र नहीं सधता । सत्य को जाने बिना महावीर का मौलिक मार्ग/ १५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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