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________________ विकास के पक्षधर हैं सर्वप्रथम दर्शन-शुद्धि, फिर विचार-शुद्धि और फिर जीवन-शुद्धि । निर्वाण इन तीनों का समवेत परिणाम है । महावीर ने कहा दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होता, बात महत्वपूर्ण है । साधना के मार्ग में ज्ञान-चारित्र से भी पूर्व दर्शन को आत्मसात् करना अनिवार्य है । दर्शन-शुद्धि के अभाव में ब्रह्मचर्य का नियम तो होगा, लेकिन वासना की तरंगें फिर भी जीवित रहेंगी । क्षमा माँगने की प्रवृत्ति तो होगी, पर क्रोध निस्तरंग नहीं हो पाएगा | अतः महावीर दर्शन-विशुद्धि पर ज्यादा जोर दे रहे हैं । अगर नजरें निर्मल नहीं हैं तो सब कुछ बेकार | जिसकी जैसी नजरें होती हैं, दुनिया उसको वैसी ही नजर आती है । दीवार भले ही सफेद हो पर, जिसने काला चश्मा लगा रखा है उसे तो वह भी काली ही दिखाई देगी । दुनिया कहेगी दीवार सफेद है पर, उसका कदाग्रह काली पर ही होगा । __ महावीर इसी काले चश्मे को उतारना चाहते हैं, ताकि सच को सच और झूठ को झूठ रूप में देखा जा सके। इसीलिए वे साधक की हथेली में सम्यक्-दर्शन का दीप थमा रहे हैं, ताकि वह सत्-असत का विवेक कभी खोए नहीं । महावीर, गीता के कृष्ण की तरह, यह कभी नहीं कह सकते कि दुनिया भर के पाप करके मेरी शरण में आ जा, मैं तुम्हें तार दूंगा | महावीर की नजरों में यह पुरुषार्थहीनता है | जब पाप स्वयं ने किये हैं तो उनसे छुटकारे की गुहारें परमात्मा से क्यों? यह तो ऐसा हुआ जैसे कि बंधे अपने हाथों से, छुटकारे के लिए प्रार्थना औरों से । जिस पाप से छूटने के लिए परमात्मा से प्रार्थना करते हो, तो क्या पाप करने से पहले परमात्मा से परामर्श लिया था कि पाप किया जाये या नहीं। इसलिए बेहतर होगा हम निष्पाप होने के लिए, खुद निर्विकार होने का प्रयास करें | जीवन संस्कार के लिए पहली आवश्यकता सम्यग्-दर्शन की है | सम्यग्-दर्शन के अभाव में ज्ञान भी सौ फीसदी सम्यग् नहीं बन पायेगा । एक बात तय है कि जब तक ज्ञान सही नहीं होगा, चारित्र भी जीवन का मौलिक सृजन नहीं, अपितु अन्धानुकरण होगा । अन्धानुकरण में भला कभी आत्म-अनुसन्धान होता है ? वहाँ केवल रटी-रटायी बातें होती हैं, भेड़चाल होती है । महावीर सत्य को आँखों से दिखलाना और प्रज्ञा से अनुभव कराना चाहते हैं । आँखों देखी सो सच्ची, कानों सुनी सो झूठी । आँखों से देखी ८/ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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