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में स्पष्ट फर्क हो गया । माना कि धर्म की अपनी मर्यादाएँ होती हैं और प्रत्येक धार्मिक को उन मर्यादाओं का पालन करना चाहिए पर, यह नहीं भूलना चाहिये कि प्रत्येक युग की भी अपनी मर्यादाएँ होती हैं और उसके चलते आवश्यक संशोधन न केवल रख-रखाव में अपितु, आचरण-संहिता में भी होना चाहिए, ताकि धर्म और जीवन, शास्त्र
और आचरण, कथनी और करनी का फर्क न रहे । भगवान पार्श्वनाथ द्वारा निर्धारित चतुर्याम-धर्म को महावीर द्वारा पाँच महाव्रतों में ढालना इस बात का साक्षी है कि युगानुरूप अनुशासन-संहिता में परिवर्तन होता
आया है। ___ हम शास्त्रीय मोह न रखें, शास्त्रीय चेतना रखें । शास्त्रों की विद्वत्ता तो हर कोई हासिल कर सकता है, लेकिन शास्त्रीय चेतना तभी सम्भव है जब हमें शास्त्रों की प्रत्यक्षानुभूति हो | आज के सूत्र में महावीर साधना का मार्ग दे रहे हैं । साधक कैसे धीरे-धीरे अपने आपको आत्मसात् करे, स्वयं का अन्वेषण करे, यही इस सूत्र का सार-संदेश है। इस सूत्र में महावीर, मार्ग का भी निर्देशन कर रहे हैं और मार्ग फल का भी । यह बिन्दु से सिन्धु की यात्रा है, अणु से विराट की यात्रा है |
ये सूत्र सत्य की सहज अभिव्यक्ति हैं, सीधे-सादे पर बेदाग हीरे हैं ये । न इनमें बांसुरी का श्रृंगार है और न ही धनुष की टंकार | यह तो एक आत्मसाधक के अन्तःस्थल से उठती हुई झंकार है। इन सूत्रों को न तो युद्धभूमि में कहा गया है और न ही शूली पर लटकते हुए या जहर का प्याला पीते हुए । ये सूत्र तो महावीर के मुख से वैसे ही सहज रूप में निकले हैं जैसे गंगोत्री से गंगा | महावीर के इन महासूत्रों का हम आचमन करें, मनन करें, आचरण करें । आज का सूत्र है
नादंसणिस्स नाणं, नाणेण विणा न हुंति चरण गुणा ।
अगुणिरत नाल्य मोक्खो, नन्यि माक्खस्स निव्वाणं ।। दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होता, ज्ञान के बिना चारित्र नहीं होता, चारित्र के बिना मोक्ष नहीं होता है और मोक्ष के बिना निर्वाण नहीं होता है।
सूत्र में पाँच प्रमुख शब्द हैं-दर्शन, ज्ञान, चारित्र, मोक्ष और निर्वाण। इनमें प्रथम तीन मार्ग हैं और शेष दो मार्गफल । महावीर क्रमशः
महावीर का मौलिक मार्ग/७
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