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________________ महावीर मात्र देश को ही स्वतंत्र नहीं देखना चाहते, वे अध्यात्म मार्ग में भी व्यक्ति-व्यक्ति को स्वतंत्रता देते हैं । यहाँ तक कि वे अपने शिष्यों और श्रावकों से भी आदेश की भाषा में बातचीत नहीं करते हैं। गुरु वह नहीं है, जो अहंकारी है । जीवन में विनम्रता ही गुरुत्व की पहचान है | महावीर हमारे लिए आचरण संहिता का निर्माण अवश्य करते हैं, लेकिन उसके परिपालन के लिए आदेश नहीं देते हैं । 'जं सेयं तं समायरे' यह उनका वह वचन है जो, आध्यात्मिक क्षेत्र में महावीर द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्रता दे रहा है । इसलिए आध्यात्मिक जगत में महावीर को स्वतंत्रता का हिमायती माना जाता है । महावीर के अनुसार व्यक्ति सुनकर सत्य को जानता है और सुनकर ही असत्य को । सत्य-असत्य दोनों को जान-समझ लेने के पश्चात व्यक्ति को जो मार्ग श्रेयस्कर लगे उस पर अपने कदम बढ़ाने चाहिये । मेरी नजर में महावीर असाम्प्रदायिक मंत्र के दाता हैं, सर्वधर्म समभाव के पक्षधर हैं | सम्प्रदाय में निर्णय अनुयायी के हाथ में नहीं, अनुशास्ता के हाथ में होता है । जबकि अध्यात्म में निर्णय की क्षमता, प्रत्येक व्यक्ति के भीतर पैदा की जाती है । जब तक हम किसी का अनुसरण करते रहेंगे, लकीर के फकीर बने रहेंगे, तब तक मुक्त कैसे हो पायेंगे । उस आचरण से भी अन्त में व्यक्ति को क्षोभ होता है जो किसी और का गढ़ा - गढ़ाया है। वहाँ आचरण संहिता तो होगी पर लीक से हटकर नहीं । फिर व्यक्ति मुहर तो उसी आचरण की लगाये रखेगा, पर अपने जीवन को उसके अनुकूल न पाकर गलियाँ ढूँढेगा । इसलिए महावीर ने औरों पर शासन का निर्देश नहीं दिया, पर उनकी परवर्ती शिष्य परम्परा ने उनके संकेतों को ही अनुशासन की संज्ञा दे दी । समय की मार ने सारी दुनिया को बदल दिया । महावीर के युग में और आज के युग में बेहद फर्क है, पर अनुशासन, नियम-निर्देश सब कुछ वही का वही । समय के चलते आचरण में फर्क हुआ, लेकिन आचार सम्बन्धी अनुशासन - संहिता वही की वही रही । परिणाम यह हुआ कि शास्त्रीय निर्देशों/मर्यादाओं और वर्तमान के आचरण में लम्बा फासला हो गया। हम आवश्यकतानुसार अनुशासन - संहिता को न बदल पाये मात्र उसमें से गलियारे निकालते गये परिणाम यह हुआ कि एक-पर-एक अनेक नियम ताक में रख दिये गये । शास्त्र और जीवन, कथनी और करनी ६ / ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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