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________________ शास्त्राण्यधीत्यापि भवन्ति मूर्खा, यस्तुक्रियावान्पुरुषः स विद्वान् । सुचिन्तितं चौषध मातुराणां, न नाम मात्रेण करोत्यरोगम् ॥ पंडित नारायण कहते हैं, बहुत से लोग शास्त्र पढ़कर भी मूर्ख होते हैं । वास्तव में विद्वान वही है, जो क्रियावान है । क्योंकि चिंतित औषधि भी नाम मात्र से रोगी को निरोग नहीं कर देती है। काफी महत्वपूर्ण उदाहरण दिया है चिंतित औषधि का | तुम रोगी हो, पर तब तक रोग मुक्त कैसे हो पाओगे जब तक ज्ञात औषधि का सेवन न होगा । मात्र औषधि का नाम रटने से या शास्त्रों के पाठ पढ़ने से जीवन-कल्याण मुमकिन नहीं है । रोग-मुक्ति के लिये न केवल औषधि का ज्ञान आवश्यक है अपितु सेवन भी आवश्यक है | संसार-मुक्ति के लिए आवश्यक है, मुक्ति का ज्ञान और तदनुरूप आचरण । ___ मात्र ज्ञान ही जीवन-कल्प के लिये पर्याप्त होता, तो विज्ञान ने ऐसे-ऐसे यन्त्र विकसित कर दिये है, जिनमें सैकड़ों शास्त्रों के वचनों को रिकार्ड किया जा सकता है और हजारों पण्डितों के मस्तिष्क को इकट्ठा किया जा सकता है, पर उन यन्त्रों में मात्र सूचनाओं का संग्रह ही होगा । उन यन्त्रों के लिये यह संभव नहीं है कि वे उन सूचनाओं के आधार पर किसी का जीवन-कल्प कर सकें। किसी वस्तु का नक्शे-किताब या सूचनाओं के आधार पर ज्ञान पाना अलग बात है, और प्रत्यक्ष में उस वस्तु के दर्शन से प्राप्त होने वाली अनुभूति अलग चीज है । एक प्रोफेसर ध्यान और योग के बारे में, चेतन और अवचेतन मन के बारे में, प्रत्याहार और कुण्डलिनी-जागरण के सम्बन्ध में घंटों भाषण दे सकता है, लेकिन स्वयं ध्यानमग्न नहीं हो सकता, योग में जी नहीं सकता और कुण्डलिनी-जागरण कर नहीं सकता। षट्-चक्र भेदन के सम्बन्ध में निबन्ध लिखकर स्वर्ण पदक पाने वाले व्यक्ति स्वयं का एक चक्र का भेदन भी कर नहीं पाते। ये प्रोफेसर, विद्वान या पण्डित उस चम्मच की तरह हैं, जो हलुए को इस बर्तन से उस बर्तन में तो डाल सकते हैं, किन्तु स्वयं हलवे का स्वाद चख नहीं सकता | यह तो ठीक वैसे ही अपने सिर पर शास्त्रों का भार ढोन हुआ, जैसे गधा चन्दन का भार ढोता है । मैंने सुना है, यूरोप में किसी भी १४०/ ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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