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________________ साधना जीवन के रूपान्तरण का नाम है । ज्ञान और चारित्र का समन्वय ही जीवन का साधना-मार्ग है । क्रियाहीन ज्ञान और ज्ञानहीन आचरण सदैव अपूर्ण कहलाएंगे । जहाँ बगैर ज्ञान की क्रिया अंधेरे में थेंगले लगाना है, वहीं आचरण रहित ज्ञान, मात्र मस्तिष्क में सूचनाओं का भार ढोना है। __ महावीर के सम्बन्ध में कहा जाता है कि वे जन्म से ही मति, श्रुत और अवधि- तीन ज्ञान के धारक थे | जीवन के तीन दशक बीतने के बाद उनके संन्यास के लिये उठाये गये कदम यह संकेत देते हैं कि परम ज्ञान की प्राप्ति मात्र वेद, पिटक और आगमों का अध्ययन करने से नहीं, वरन् उन्हें जीवन में आत्मसात् करने से है | महावीर और बुद्ध ने परमज्ञान उपलब्ध करने के लिये, न कहीं गुरुओं के पास जाकर प्रवज्या ग्रहण की और न ही किसी गुफा में बैठकर शास्त्रों का अध्ययन किया । दोनों ने ही परम ज्ञान की उपलब्धि के लिये, आचार-शुद्धि को अनिवार्य माना और अपने जीवन में ज्ञान और चारित्र का समवेत दीप प्रज्वलित करने के लिये अभिनिष्क्रमण किया । महावीर ने बात-बात में शास्त्रों के कोरे आश्वासन और तर्क-बुद्धि लगाने वालों को सदैव फटकारा, क्योंकि ऐसी स्थिति में आचरण सत्य के आधार पर नहीं, अपितु शास्त्रों के आधार पर चलता है | शास्त्र हों या गुरु सभी मार्ग का दिशा निर्देश दे सकते हैं, लेकिन जीवन कल्प तभी होता है, जब व्यक्ति आत्म अनुभवों के आधार पर, अपनी पगडण्डी का निर्माण स्वयं करता है, आत्मदीप बनकर अपने जीवन का मार्ग वह स्वयं प्रशस्त करता है | जीवन निर्माण के लिए मात्र शास्त्र-अध्ययन ही पर्याप्त नहीं है, आवश्यकता सम्यक् आचरण की भी है । शास्त्रों से व्यक्ति सत्य ढंढ़ सकता है, लेकिन सत्य में जी नहीं सकता । सत्य केवल भाषण तक सीमित हो यह ठीक नहीं है, सत्य आचरण में भी होना चाहिए। दीप बनें देहरी के/१३९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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