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"एक व्यक्ति वह है, जो केवल परमात्मा का नाम-स्मरण करता है और एक व्यक्ति वह है, जो परमात्मा की आज्ञा का पालन करता है । इनमें यथार्थत: परमात्मा की उपासना वही कर रहा है, जो परमात्मा की आज्ञाओं का पालन कर रहा है । अपने कर्तव्यों को छोड़, जो मात्र कृष्ण-कृष्ण रटता है, वह भला कृष्ण को कैसे पा सकेगा। आवश्यकता धर्म के कथन की नहीं, धर्म के परिपालन की है, क्योंकि धर्म की रक्षा के लिये ही तो स्वयं कृष्ण ने जन्म लिया था ।"
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