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________________ खोली। सबमें यह प्रश्न खड़ा रहा कि 'सत्य क्या है' ? लिंग श के इस संकेत को कोई समझ न पाया-'मैं आँख बंद कर रहा हूँ, तुम देख रहे हो-क्या इसके बाद कुछ जानना शेष रह जाता है ?' लिंग शू चले गये । उनके जीते जी भी शिष्य पूछते रहे कि सत्य क्या है और मरने के बाद भी । शायद न केवल लिंग शू अपितु कोई भी भगवत् पुरुष अभी तक यह जवाब नहीं दे पाया कि सत्य क्या है। जड़ की व्याख्या की जा सकती है, पुद्गल का विवेचन किया जा सकता है, लेकिन चेतना के बारे में सिर्फ अनुभूति की जा सकती है । अगर शरीर- विज्ञान की पुस्तक देखो तो प्रत्येक अंग के संबंध में, प्रत्येक नाड़ी के बारे में, प्रत्येक हड्डी के बारे में सूक्ष्म से सूक्ष्म व्याख्या मिल सकती है लेकिन आत्मा के बारे में किसी शरीर-विज्ञान में कोई व्याख्या नहीं मिल सकती । मकान में ईट, चूना, पत्थर जो कुछ भी लगा है, सब की व्याख्या की जा सकेगी लेकिन आकाश प्रदेश की कभी कोई व्याख्या नहीं कर सकेगा । धर्म और अध्यात्म, जन्म-जीवन-मृत्यु, संसार का ऐसा कोई तत्त्व नहीं है, जिसके बारे कुछ न कहा जा सके लेकिन आत्मा और सत्य-दो ऐसे तत्त्व हैं जिनकी सिर्फ उपलब्धि और अनुभूति की जा सकती है इसलिए केवल ईसा और लिंग शू ही सत्य के मामले में मौन नहीं रहे अपितु अब तक कोई भी 'सत्य क्या है' इसका संपूर्ण जवाब नहीं दे पाया। ___ सत्य एक ऐसा तत्त्व है, जहाँ दिशा दर्शन तो संभव है लेकिन मार्गदर्शन नहीं । सत्य कहकर नहीं कहा जा सकता है यह तो अनुभव है, अन्तश्चक्षु का | इसलिए इसकी जब-जब भी व्याख्याएं की जाएंगी, तब-तब परिवेश से व्याख्याएं होंगी | शंकर कहते हैं जो बाहर से जो ब्रह्म दिखाई देता है वह मिथ्या है, भ्रम है और जो अन्तश्चक्षु से दिखाई देता है वह ब्रह्म है । इसलिए यह मत पूछो कि सत्य क्या है । इसे जानकर कभी उपलब्ध नहीं किया जा सकेगा । उपलब्धि तब होगी, जब तत्संबंधी परिभाषा हमारे हाथ लग जाएगी । हमारे द्वारा यही चूक होती रही है कि जब भी सद्गुरु का सामिप्य मिला हम पूछते रहे कि सत्य क्या है । अगर यह ज्ञान एक दूजे को दिया जा सकता तो हर गुरु शिष्य को यह ज्ञान दे देता और दुनिया में सत्य की खोज के मार्ग अवरुद्ध हो जाते । इसलिए अगर पूछना/जानना चाहते हो तो यह १३२/ ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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