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________________ जानो, जो सम्यक मार्ग मिले उसे स्वीकार करो । अन्यथा किसी जन्म में ईसाई धर्म से, किसी जन्म में मुस्लिम धर्म से, किसी जन्म में जैन-धर्म से बंधे रहोगे । हर जन्म के पश्चात चोला बदलता रहेगा । हमें धर्म का नहीं जीवन का परिवर्तन करना है । जीवन के परिवर्तन का अर्थ है, व्यक्ति सत्य का स्वयं अनुसंधान करे । सत्य की खोज स्वयं करें। सत्य मात्र वाणी तक न रहे, हृदय में उतरे | हम सत्य के हस्ताक्षर भी वाणी से करते आये हैं। हमें सत्य को हृदय में उतारना है और हृदय से उसे प्रकट करना है । जब सत्य हृदय से प्रगट होगा तो वह न परम्परा रहेगा, न झूठ रहेगा, वह रहेगा मात्र सत्य | और फिर जो कदम आगे बढ़ेगा वह सम्यक् होगा । अन्यथा कामनाओं की पूर्ति के लिए, अपनी वासना की पूर्ति के लिए इंसान झूठ का सहारा लेता रहेगा । सत्य के दस्तखत केवल जुबान तक ही न हो, हृदय में भी हो | सत्य के लिए जीवन समर्पित करने वाले ही सत्य को पा सकते हैं। लोग शिकायत करते हैं, अपने मन की चंचलता के बारे में । उनकी शिकायत भी वाजिब है और मन की चंचलता भी । पूछते हैं मुझसे कि इस चंचलता को शांत करने की तरकीब बताइए । इन सब लोगों के लिए कोई तरकीब नहीं हो सकती जो चौबीसों घंटे झूठ में जी रहे हैं, बेईमानी और चोरी में जी रहे हैं । अपने भीतर इतनी झूठी बातें पाल रखी हैं कि इन झूठी बातों के जर्रे-जर्रे की जांच पड़ताल करवानी होगी। हम ध्यान कर रहे हैं, मालाएं जप रहे हैं, पूजा प्रार्थनाएं कर रहे हैं, लेकिन अपने ईमान को सुरक्षित नहीं रख पा रहे हैं, तो यह सब केवल ऊपरी लीपापोती होगी, अंतरंग में परिवर्तन की कोई रेखा नहीं उभर पाएगी । स्वयं जैसे हो वैसा स्वीकार करो । - लोग दान देते हैं, अगर उनसे जाकर पूछो कि इनमें कौन ऐसा है जो दान के लिए दान देता हो, जो इसलिए देता हो, क्योंकि उसे आवश्यकता से अधिक मिला है | लोग दान देने के लिए नहीं, अपितु पाने के लिए करते हैं । यह सोचकर देते हैं कि आज एक देंगे तो कल दस मिलेगा । अगर इन सब लोगों को बता दिया जाए कि देने से कुछ नहीं मिलेगा तो कोई कुछ नहीं देगा | सब लोग देना बंद कर देंगे । ये दान देते हैं, लेकिन पुण्योपार्जन की कामना के साथ या आँख की शर्म के कारण । दुकान पर समाज के पाँच प्रतिष्ठित लोग आ गए, दान मांगा, ना कहना नामुमकिन हो गया । इच्छा हो या न हो, दान तो देना ही पड़ेगा। १२६/ ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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