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________________ हम कहते हैं 'सत्यमेव जयते', 'सत्यं शिवं सुन्दरम्' ,पता नहीं ऐसी कितनी अच्छी-अच्छी बातें हम कहा करते हैं, लेकिन जीवन में इस वाक्य को हम पूरी तरह से बदल देते हैं | जबान कहती है 'सत्यमेव जयते' और हमारा जीवन कहता है 'असत्यमेव जयते' | गीत गुनगुनाये जाते है 'सत्यं शिवं सुन्दरम्' के और हमारा आचरण कहता है 'असत्यं शिवं सुन्दरम् ।' इसलिए भगवान कहते हैं-सत्य को पहचानो । सत्य को पहचानने बाद जो कुछ किया जायेगा वह कल्याणकारी होगा, वह श्रेयस्कर होगा अभी तक हम दूसरों के कृत्य का अनुसरण करते आये हैं । हमने अभी तक अपने जीवन की तराजु में सत्य को नहीं तौला है, हम भेड़ चाल से उबरकर बाहर आयें और जीवन के सत्य का अनुसंधान करें। ___ महावीर ने कहा, 'सत्य में संयम का वास है | त्याग और तप का वास है, यदि हम मात्र परंपराओं का निर्वाह करते रहेंगे तो महावीर के अनुयायी तो कहलायेंगे, पर महावीर नहीं बन पाएंगे | हम राग में राग छेड़ते रहेंगे, धुन में धुन मिलाते रहेंगे लेकिन इतना सब कुछ करने में भी भीतर की वीणा में झंकार पैदा नहीं हो पाएगी । मुझे याद है एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन कहीं जा रहे थे । मार्ग में उनका मित्र मिला, उसने कहा 'मुल्ला कहाँ, जा रहे हो ? नसरुद्दीन ने कहा, 'क्या तुम्हें पता नहीं नगर में शास्त्रीय संगीत का आयोजन हो रहा है, उसे ही सुनने जा रहा हूँ ।' मित्र ने कहा, 'मुल्ला तुम्हें ! शास्त्रीय संगीत का न तो ज्ञान है, न रुचि ।' मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, 'आस-पास के सभी पड़ोसी शास्त्रीय संगीत सुनने जा रहे हैं; मैं नहीं गया तो सभी पड़ोसी कहेंगे कि मुल्ला को संगीत का ज्ञान नहीं है। मेरा जाना तो अनिवार्य है ।' नसरुद्दीन संगीत सभा में पहुँच गये । उन्हें शास्त्रीय संगीत का ज्ञान तो था ही नहीं, सुनकर बोले, 'ये बंदा रोता क्यों हैं ?' और मल्ला ने भी रोना प्रारंभ कर दिया । आसपास बैठे श्रोताओं ने कहा 'मुल्ला ! संगीत-सभा में ये विघ्न क्यों उत्पन्न करते हो ।' मुल्ला ने कहा, 'तुम्हें शास्त्रीय संगीत का ज्ञान कहाँ ? मैं धुन में धुन मिला रहा हूँ ।' हम भी ऐसे ही परम्पराओं का बोझ ढो रहे हैं। परम्परा के नाम पर धन में धन मिला रहे हैं । अनुकरण के पूर्व भी सत्य की खोज अनिवार्य है। महावीर तो यहाँ तक कहते हैं, तुम सत्य और असत्य के भेद को सत्य वाणी का, अंतर का/१२५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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