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से, उनकी रही सही प्रतिष्ठा भी रसातल में चली गई । भिक्षुओं को आहार मिलना मुश्किल हो गया । और तो और गलियों से गुजरना भी मुश्किल हो गया । भिक्षु जहाँ से गुजरते लोग कहते, ये हत्यारे बुद्ध के शिष्य हैं, ये हत्यारे गौतम के शिष्य हैं । बुद्ध की ओर से प्रतिकार न होने के कारण हालत और बिगड़ गई। लोग बुद्ध के शिष्यों को घर की ओर आता देख दरवाजे बंद करने लगे। ___ हालत बिगड़ती देख एक दिन सारे शिष्य एकत्रित होकर बुद्ध के पास पहुँचे और निवेदन किया, 'भगवन् ! पानी सिर के ऊपर से बहने लग गया है, अगर अब आपने प्रतिकार नहीं किया तो हम सब लोगों का जीवन भी खतरे में पड़ जायेगा ।'
तब तथागत मुस्कुराये और धीमी आवाज में कहा, 'शिष्यों ! मौन रहो। असत्य सदा असत्य ही रहेगा, सत्य की विजय अवश्य होगी । संभव है कुछ दिनों के लिए असत्य सिंहासन पर बैठकर राज कर ले, लेकिन अंत में मंह के बल उसी को गिरना पड़ेगा । मेरे प्यारे शिष्यों, तुम धैर्य रखो और अपनी श्रद्धा की अग्नि परीक्षा होने दो । यह कसौटी का अवसर है, इसके पश्चात जो श्रद्धा निखरेगी वह ज्योतिर्मय होगी। - झूठ अपनी पराकाष्ठा को छू चुकी थी । समय ने पासा पलटा, अब बारी सत्य के विजय की थी । एक दिन मदिरालय में वे गंडे शराब पी रहे थे, जिन्होंने धर्म-गुरुओं के निर्देश पर सुंदरी की हत्या की थी । संयोग से कुछ सैनिक भी वहाँ थे, हत्यारे नशे में चूर थे । एक दूजे से लड़ते-झगड़ते उन्होंने सुन्दरी की हत्या और धर्मगुरुओं के षडयंत्र का पर्दाफाश कर दिया । सैनिकों ने तत्काल उन्हें बंदी बना लिया । राजसभा में उन्होंने संपूर्ण घटना बताई कि किस प्रकार उन्होंने हत्या की और परिव्राजिका सुन्दरी का शव फूलों के ढेर में छिपाया | बात विद्युत् गति से नगर में फैल गई। तथाकथित धर्मगुरु निन्दित हुए और बुद्ध प्रशंसित। स्वयं सम्राट ने क्षमा मांगी । तब अर्हत ने सम्राट से कहा, 'राजन् ! मैंने पहले ही कहा था, सत्य अपनी रक्षा करने में स्वयं समर्थ है ।' ___नीत्से ने मानव जाति का गहराई से अध्ययन किया। उन्होंने मनुष्य के भीतर की एक-एक ग्रन्थि को पकड़ा । और अगर नीत्से को पूछो, तो वे यही रहस्योद्घाटन करेंगे कि मनुष्य झूठ के बिना जी नहीं सकता। झूठ हमारे रोम-रोम में समाया हुआ है । सत्य सीखने के लिए गुरु की शरण में जाना पड़ता है, लेकिन झूठ आदमी घर बैठे सीख लेता है | १२२/ ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ
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