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________________ कांटे-सी चुभने लगी और वे ऐसी योजना बनाने लगे ताकि जनता में अर्हत के प्रति घृणा पैदा हो जाए। उन्होंने एक ऐसा षडयंत्र रचा कि अर्हत मुंह दिखाने लायक भी न रहें । उन्होंने अर्हत की ही एक शिष्या परिव्राजिका सुन्दरी को धन का लोभ देकर अपने षडयंत्र में सम्मिलित किया । सुन्दरी उस युग की सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी थी, लेकिन भगवान के उपदेशों से प्रभावित होकर उनकी शिष्या बन गयी। ___ कहते हैं भाई-भाई को नीचे गिराता है, लोहा-लोहे को काटता है वैसे ही संसार में गुरुओं की निन्दा भी शिष्यों से ही होती है । और तो और क्राइस्ट को उन्हीं के शिष्य जुडास ने सिर्फ तीस रुपये में बेच दिया था । कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें गुरु के महत्त्व का ज्ञान नहीं होता, वे शिष्य तो बन जाते हैं, किन्तु कंचन और कामिनी के आकर्षण से मुक्त नहीं हो पाते और गुरु को दगा तक दे बैठते हैं | ओशो रजनीश के अमेरिका स्थित रजनीशपरम् के विनाश का मूल कारण स्वयं ओशो या उनके सिद्धांत इतने नहीं थे, अगर एक महिला, जो उनकी प्रथम शिष्या थी, उन्हें धोखा न देती तो वह सब कुछ नहीं होता जो हुआ । जब-जब भी महावीर जैसे महापुरुष पैदा हुए हैं, तब-तब गोशालक जैसों ने शिष्य बनकर धोखा किया । परिव्राजिका सुन्दरी धन के लोभ में गुरुद्रोह कर बैठी | षडयंत्रकारी तथाकथित धर्मगुरुओं के संकेत पर सुन्दरी रात में जैतवन जाती और सुबह जैतवन से लौटकर नगरवासियों को कहती, बुद्ध के आमंत्रण पर रात्रि-सुख देने गई थी, वहीं से वापस लौटी हूँ | सुगंध को फैलाने में समय लगता है, लेकिन दुर्गंध ? इसकी गति तो सुगंध से सौ गुनी तेज होती है | सुन्दरी की विकृत चर्चा सारे नगर में फैल गई । सुन्दरी नगर की श्रेष्ठ सुन्दरी थी । नगर में सैकड़ों लोग उसके प्रति आकर्षित भी थे अतः उसकी बात लोगों को प्रभावित करने लगी । लोग सोचते, जो दिखने मात्र से हमारे मन को विकृत कर देती है, वह बुद्ध को सदा पास में रहकर क्या विकृत नहीं कर पाएगी ! __ बुद्ध की अपकीर्ति पूरे नगर में फैल गई ! कुछ दिन पहले जहाँ प्रवचन में हजारों-हजार लोग पहुँचते थे, वहाँ गिने-चुने दस-बीस लोग बचे | शिष्य कहते, प्रभु आप इस मिथ्या आरोप का खंडन क्यों नहीं करते ? भगवान मुस्कुराते, कहते, सत्य के लिए स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं होती । भगवान को सत्य पर अटूट श्रद्धा थी । वे १२०/ ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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