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जैसे ही महावीर निर्वस्त्र हुए, देवों ने उन्हें एक वस्त्र दिया, उन्होंने सहजभाव से ग्रहण कर लिया । ब्राह्मण भिखारी ने माँगा, आधा वस्त्र दे दिया, शेष आधा भी जब कंधे से उड़ गया तो उसे भी छोड़ दिया और इस तरह महावीर सहजतया निर्वस्त्र हो गये ।
महावीर सत्य के पक्षधर हैं और हम चौबीसों घंटे असत्य में जी रहे हैं। अगर हमारे रक्त की जाँच कराइ जाए तो जैसे 'सुगर' की बीमारी का पता चलता है वैसे ही असत्य की बीमारी का पता चलेगा, क्योंकि यह रोग हर किसी के साथ जुड़ा हुआ है । हमारे खून की हर बंद में झूठ के कण बिखरे हुए हैं । हम बिना कारण झूठ बोलते हैं । मैं देखता हूँ लोग यात्रा करते हैं 'कालका एक्सप्रेस' से और कहेंगे 'राजधानी एक्सप्रेस' से आए हैं । खाएंगे सूखी रोटी और कहेंगे मालपूआ खाकर आया हूँ | अपनी इज्जत को बढ़ाने के लिए बेइमानी का सहारा लेकर औरों की नजर में तो ऊंचे उठ जाओगे, परन्तु एक दिन ऐसा आएगा कि स्वयं की नजरों में ही गिर जाओगे |
सम्भव है, सच बोलने से हमारा पद हमारे हाथ से छूट जाए, हमारी प्रतिष्ठा में आंच आ जाए या पैसा छिटक जाए । लेकिन ऐसा करके हम अपने आप को बचाए रखेंगे । कहीं ऐसा न हो कि पंजी, पद और प्रतिष्ठा को बचाने के चक्कर में हम स्वयं ही दिग्भ्रमित हो जाएं। अगर इन सबको खोकर हमने स्वयं को बचाए रखा, अपने ईमान और धर्म को बचाए रखा तो यह जीवन का अभिनिष्क्रमण होगा, क्योंकि महावीर सत्य में संयम स्वीकार करते हैं, तपस्या स्वीकार करते हैं, धर्म के समस्त गुण स्वीकार करते हैं । सम्भव है सत्य के मार्ग में कांटे ही कांटे मिले, पर कांटों से गुजरकर ही तो फूलों तक पहुँचा जाता है । सम्भव है तुम्हें बार-बार यह दिखाई दे कि दुनिया में विजय झूठ की हो रही है, पर मेरी यह बात सदा याद रखना कि अन्तिम विजय सदा सत्य की ही होती है ।
मैंने सुना है अहत् बुद्ध जेतवन में चातुर्मास कर रहे थे । अर्हत् के अमृत सन्देशों का श्रोताओं के माध्यम से ऐसा प्रचार हुआ कि हजारों की भीड़ उनका प्रवचन सुनने उमड़ पड़ी । अर्हत का प्रभाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था । जो वस्तुतः धर्मानुरागी थे, वे अतीव प्रफुल्लित थे। पर कुछ कुटिल जनों को जो नगर के धर्म-गुरु कहलाते थे, अर्हत ख्याति रास नहीं आयी । उनके प्राणों में अर्हत की नगर में उपस्थिति
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सत्य वाणी का अंतर का / ११९
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