SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खुली किताब की तरह है । सम्भव है ऐसे करने में तुम्हें इच्छित परिणाम न मिले, पर भविष्य की उज्ज्वलता को कोई रोक नहीं पायेगा । गांधीजी ने अपनी आत्म कथा में लिखा था कि जहाँ सत्य की चाह और उपासना है, वहाँ परिणाम चाहे हमारी धारणा के अनुसार न निकले, कुछ और ही निकले, परन्तु वह अनिष्ट बुरा नहीं होता और कभी-कभी तो आशा से भी अधिक अच्छा हो जाता है । सत्पथ पर चलने के लिए जागरूकता एवं विवेक की आवश्यकता है । जब हम धैर्य और विवेक के साथ सत्पथ पर गमन करेंगे तब सत्य हमारे अंधकार को तिरोहित कर हमें प्रकाशित करेगा । माना कि जीवन में घोर अंधेरा है लेकिन जिनके पास सच्चाई का दिया है वे सब सदैव प्रकाश में जीते हैं। जीवन में साहस और आत्मविश्वास बटोरें, अगर ऐसा न किया तो सब कुछ करके भी अंधेरे में रह जाओगे । हम अपना विकास स्वयं करें और इस चिंतन के साथ कि मुझे अपने व्यक्तित्व का विकास करना है । अगर इस व्यक्तित्व विकास में सत्य का आशीर्वाद साथ लिए चलते रहे, तो महावीर कहते हैं कि तपश्चर्या और संयम स्वतः जीवन में अवतरित हो जाएंगे । रजोहरण से चींटी को बचाना अलग बात है और विचारों से हिंसा को हटाना अलग बात है | अगर विचारों में हिंसा विद्यमान रहेगी तो तुम चींटी को बचाकर भी चींटी की हत्या करते रहोगे, क्योंकि हिंसा का सम्बन्ध व्यवहार से कम, निश्चय से ज्यादा है । महावीर ने प्रव्रज्या चारित्र - पालन के लिए कम, सत्य के अनुसंधान के लिए ग्रहण की थी, क्योंकि सत्य को जब तक जाना पहचाना नहीं जाएगा, सत्य से हम रु-ब-रु नहीं होंगे तब तक हम कैसे ग्राह्य को पहचान पाएंगे और कैसे अग्राह्य को । करणीय और अकरणीय का विभाजन कैसे कर पाएंगे ? नग्न होकर साधु बन जाना अलग बात है, और अन्तर्मन से निर्दोष हो जाना अलग बात है । बाहर से कपड़े हर कोई उतार सकता है, और बाथरूम में उतारता भी है, लेकिन क्या वहाँ निर्दोष भाव पैदा होता है ? महावीर ने कभी नग्न होने का अभ्यास नहीं किया । ऐसा नहीं कि पहले लंगोटी पहनी हो और फिर धीरे-धीरे लज्जा त्याग कर उसे छोड़ा हो । वहाँ जो कुछ हुआ, सहज हुआ । जब घर छोड़ा था तब सब कुछ छोड़ दिया था । भीतरी वस्त्र तक न रखा, क्योंकि अगर प्रकृति के साथ जीना है तो प्रकृति जैसा ही होना पड़ेगा | ११८/ ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy