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________________ को जितना ज्यादा दबाया जाएगा, उतना ही ज्यादा वह शरीर के लिए हानिकारक होगा। ___ चोले को बदलना अलग बात है और जीवन को बदलना अलग बात है। वेश का परिवर्तन व्यावहारिक रूप में दीक्षा है, लेकिन महावीर की नजरों में, जीवन में, सत्य का अनुष्ठान, यह वास्तविक प्रव्रज्या है। अंधकार से प्रकाश की ओर गति तभी हो पाएगी जब अपने जीवन में बुराइयों को चुन-चुन कर बाहर निकालोगे, क्योंकि बुराइयों को जितना ज्यादा भीतर दबाओगे वे अपनी शाखाएँ फैलाती जाएंगी और जड़ें गहरी करती जाएंगी। अगर संयम के मार्ग में कोई साधक दोहरी नीति अपनाता है, तो उसकी साधना स्वयं में एक प्रश्न चिह्न है | प्रव्रज्या सत्य को दबाने के लिए नहीं; सत्य को स्वीकार करने, प्रगट करने के लिए है । अगर एक साधु की आवश्यकता है कि वह 'कोलगेट पेस्ट' का प्रयोग करे, तो यह सोचकर, छिपकर उसका उपयोग नहीं करना चाहिए कि समाज क्या कहेगा, संभव है मुनि के लिए 'पेस्ट' से मंजन करना अनुचित है, पर छिपकर करना क्या इससे ज्यादा अनुचित नहीं है । जो कुछ करते हो खुले-आम करो । हो सकता छिपकर करने से तुम व्यवहार में चारित्र-निष्ठ श्रमण कहला लोगे, लेकिन भीतर में ऐसा करके इस चारित्र-पालन से भी सिवा कर्म-बन्धन के कुछ न कर पाओगे। जहर चाहे खुले आम पिओ या छिपकर वह तो अपना प्रभाव दिखाएगा ही। महावीर आज के सूत्र में जिस सत्य की चर्चा कर रहे हैं, उसका अर्थ है-ऐसे जीना जिसमें प्रवंचना न हो । बाहर-भीतर में दोहरी नीति न हो । मुनि 'समाज क्या कहेगा' यह सोचने के लिए नहीं बने हो, मुनि बने हो, अपने मन को पढ़ने और समझने के लिए. जीवन की वास्तविकता को आत्मसात् करने के लिए । संयम जीवन में छिपकर किया जाने वाला कार्य, सिद्धातों का हनन, समाज के साथ नहीं अपितु अपने साथ धोखा है । इस आत्मप्रवंचना को कब तक करते रहोगे ? पेश करो अपनी आवश्यकताओं और समस्याओं को समाज के सामने, वह आज नहीं तो कल अवश्य स्वीकार करेगा । अगर हमने ऐसा नहीं किया तो आने वाला कल ऐसा होगा, जब फूल तो रहेगा लेकिन फूल में भी सड़ांध होगी । इसलिए स्वयं को पूरी तरह खुले-आम पेश करो। चाहे दोष हैं तो दोष और गुण हैं तो गुण-किसी को भी पर्दे में छिपाकर मत रखो । वे लोग कभी भी अशुभ कर्म नहीं करते हैं जिनका जीवन . सत्य वाणी का, अंतर का/११७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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