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________________ नहीं तो और क्या है ? __लोग अपनी असलियत को छिपाते हैं और बातचीत में बड़ी-बड़ी डींगें हाँकते हैं । मैं उन लोगों से अपने-आपको बहुत दूर रखना चाहता हूँ, क्योंकि ये लोग कथनी और करनी में कहीं तालमेल नहीं बैठा पाते हैं । घर में खाने को रोटी नहीं होगी और अपनी पहुँच सत्ता शिखर तक बताएंगे, इसी तरह राजनीति में लोग लगातार झूठ, फरेब, बेइमानी का सहारा लेकर जीवन-मूल्यों को आहत कर रहे हैं । महावीर का आज का सूत्र मनुष्य के दोहरेपन को समाप्त करने के लिए ही है | उनका सूत्र है सच्चम्मि वसदि तवो, सच्चम्मि संजमो तह वसे सेसाविगुणा । सच्चं णिबंधणं हिय गुणाणमुदधीव मच्छाणं ।। सत्य में तप, संयम और शेष समस्त गुणों का वास होता है । जैसे समुद्र जलचर जीवों का उत्पत्ति स्थान है वैसे ही सत्य समस्त गुणों का कारण है। ___ महावीर कहते हैं, 'सत्य में तप, संयम और शेष समस्त गुणों का वास होता है ।' महावीर की बात महत्वपूर्ण है । वे तपस्या को सत्य में ढूंढ रहे हैं, संयम और साधना के समस्त आयामों को भी सत्य में खोजते हैं । चाहे हम तप करें या संयम का अनुपालन, अगर यह सब कुछ सत्य से ओतप्रोत नहीं है तो जीवन और अध्यात्म के साथ बेइंसाफी होगी, क्योंकि जीवन की महत्ता सत्य में जीने में है। तुलसीदास धर्म के समस्त अंगों को सत्य में ही स्वीकार करते हैं। उनके अनुसार सृष्टि के जितने भी सुकृत्य हैं सब का निवास सत्य में है, 'धरम न दूसर सत्य समाना, आगम निगम पुरान बखाना ।' इसे हम यों समझें जैसे सागर में समस्त नदियाँ आकर समा जाती हैं वैसे ही सत्य है, जिसमें धर्म के समस्त गुण समा जाते हैं । सम्भव है, व्यवहार में हम सभी संयम का पालन कर लेंगे, सामायिक और प्रतिक्रमण भी कर लेंगे, पर भीतर से अगर यह सब कुछ नहीं होगा, तो यह भी जीवन का दोहरापन होगा | अगर तुम्हारे जीवन में किसी प्रकार की त्रुटि है तो उसे छिपाओ मत, प्रकट कर दो, क्योंकि मवाद ११६/ ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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