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________________ पर के साथ 'कु' का प्रयोग करना साम्प्रादायिक व्यामोह नहीं तो और क्या है ? अभी अयोध्या में मन्दिर और मस्जिद को लेकर जो कुछ हुआ उसने देश भर में इंसानियत का जनाजा निकाल दिया । हिन्दू ने मुसलमान को और मुसलमान ने हिन्दू को मारा, इन दोनों की मारकाट से इस देश की मानवता पर मातम छा गया । ___ मन्दिर का शिखर गिरने पर मौलाना खुश होता है और मस्जिद की मीनारें ढहने पर पंडित । साम्प्रदायिक आसक्ति का परिणाम यह होता है, कि व्यक्ति सृजन का मार्ग छोड़कर विध्वंस का मार्ग अपना लेता है। जो अपना हित नहीं कर सकता, वह दूसरों का अहित कर खुश होता है। मन्दिर बनाने का सामर्थ्य नहीं है तो मस्जिद तोड़कर ही पुण्य कमाना चाहता है | चाहे मन्दिर हो या मस्जिद, किसी को मिटाकर नव निर्माण करना बुद्धिमानी नहीं कही जा सकती। साम्प्रदायिक व्यामोह को गिराना ही आध्यात्मिकता है, धार्मिकता है, नैतिकता है। महावीर ने कहा, 'दल-दल में फंसा हाथी ।' सीधा-सा अर्थ हुआ आसक्ति में फंसा हुआ मनुष्य । यहाँ हर मनुष्य शोक-ग्रस्त है, यह बात अलग है कि शोक के कारण अलग-अलग हों, लेकिन शोक हर किसी का पिछलग्गू है | कोई इसलिए शोक कर रहा है कि उसे पिछले वर्ष पन्द्रह लाख की आय हुई थी, इस वर्ष तो पांच की हुई है । जो पांच पाया उसका हर्ष नहीं है लेकिन जो दस हाथ न लगा उसका शोक है। कभी भिखारियों की जमात देखी है ? सिर्फ आपकी, अपने मकान और बंगले के प्रति आसक्ति होती हो ऐसी बात नहीं है । भिखारी ने भी उस स्थान पर कब्जा कर रखा है, जहाँ बैठकर वह रोज भीख मांगता है । वह उस स्थान पर कब्जे के लिए झगड़ा भी कर लेगा। दिल्ली, बम्बई, कलकत्ता में तो भिखारी, अपनी भीख मांगने की जगह एक-दूजे को किराये पर देते हैं । अभी कुछ दिन पूर्व मैंने सुना, कि बम्बई के एक भिखारी ने अपने दामाद को दहेज में वह स्थान दिया, जहाँ वैठकर वह वर्षों से भीख मांगता था। बड़े शहरों में देखा होगा, भिखारी भी जिस जगह पर बैठता है, सड़क के किनारे, वह उसकी हो जाती है | अगर कोई दूसरा वहाँ बैठ जाये तो झगड़ा शुरु हो जाता है। वैसे फुटपाथ किसी की बपौती नहीं हो सकता । मगर इन भिखारीयों के अपने अड्डे हैं । जो भिखारी जहाँ बैठकर कमाता है, वह उसकी दुकान हो जाती है। ९८/ ज्योति कलश छलके : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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