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मिट्टी का तू सोने के सब सामान हैं तेरे, . मिट्टी की काया मिट्टी में, जिस दिन समाएगी, ना सोना काम आएगा, ना चांदी आए पर खोल ले पंछी तू पिंजरा छोड़कर उड़जा, माया महल के सारे बन्धन तोड़कर उड़जा, धड़कन में जिस दिन मौत तेरी गुनगुनाएगी,
ना सोना काम आएगा, ना चाँदी आएगी ।। यह गीत उस पंछी के नाम है, जो पिंजरे में कैद है और पिंजरे से ही मोह कर बैठा है । यह गीत आह्वान है पंछी को पिंजरा छोड़ने के लिए, बंधन तोड़ने के लिए । धड़कन में मौत गुनगुनाए उससे पहले बेहोशी को तोड़ें, अपने अस्तित्व को आत्मसात् करें | आज महावीर के जिस सूत्र के हम तार छेड़ेगें, वह इसी बेहोशी और आसक्ति को तोड़ने के लिए है, संसार को जगाने के लिए है । यह संदेश उसके लिए है जो दुःख में जी रहा है, दुःखों को पहचान भी रहा है, लेकिन मुक्त नहीं हो पा रहा है । इसलिए आज का सूत्र बंधन से मक्ति का सूत्र है। सूत्र है
नागो जहा पंकजलावसन्नो, दटुं पलं नाभिसमेइ तीरा ।
एवं वयं कामगुणेसु गिद्धा, न भिक्खुणो मग्गमणुवयामो ।। जैसे दलदल में फँसा हुआ हाथी जमीन को देखते हुए भी किनारे पर नहीं पहुंच पाता, वैसे ही काम-गुणों में आसक्त, श्रमण-धर्म को जानते हुए भी उसका अनुसरण नहीं कर पाते । ___ महावीर का यह सूत्र जागृति का सन्देश है । यह उनके अनुभव की वाणी है । इस सूत्र से माया टूटेगी, स्वप्न टूटेगा, बेहोशी टूटेगी । 'जैसे दल-दल में फंसा हुआ हाथी जमीन को देखकर भी किनारे नहीं पहुंच पाता ।' महावीर ने जीवन की सच्चाई को उजागर करने के लिए सुन्दर उपमा दी है- दल-दल, हाथी और जमीन । महावीर ने देखा होगा कहीं दल-दल में फंसे हाथी को | यह एक पारम्परिक किन्तु व्यावहारिक उदाहरण है दल-दल और हाथी का । कीचड़ में कमल खिलते हैं हाथी उनके सौन्दर्य के प्रति आकर्षित भी होता है, पर कीचड़ में धंसने के बाद चाहे कमल हो या हाथी मुक्ति का मार्ग हाथ लगना कठिन है ।
अनासक्तिः संसार में संन्यास/९५
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