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________________ कहाँ तक फैलायेगें हम अपनी आसक्ति, मूर्च्छा और इच्छा के दायरे को । आसाक्ति न शुभ है, न शान्त है । यह खून की तरह लाल है, मद की तरह नशीली है, बुद्धि की स्थिरता खोती है । यह सही को गलत और गलत को सही दिखाती है । आसक्ति और सम्मोहन के विविध रूप हैं । व्यक्ति की आसक्ति, मूर्च्छा और सम्मोहन सब कुछ जड़ के साथ होता है । वह दलदल में पैदा होता है और दलदल में ही उलझा रहता है । कितनी कितनी प्रकार की आसक्ति में जीता है इंसान । मकान का राग, पुत्र का राग, पत्नी-परिवार-पैसे का राग, पता नहीं राग के कितने रूप उसे चारों ओर से घेर लेते हैं । व्यक्ति की आसक्ति को जब-जब भी चोट लगेगी वह दुःखी और व्यथित होगा | दुकान और मकान की थोड़ी-सी क्षति भी आसक्त मन में भयंकर बवाल खड़ा कर देती है । मकान गिरा इसलिए व्यक्ति नहीं रोता है, आंखों में आँसू इसलिए है कि उसके ममत्व को चोट लगी । अगर मकान गिरने से या आग लगने से आंख में आंसू आते तो पड़ौसी के मकान गिरने पर क्यों नहीं आते ? वास्तव में ये आंसू मकान के गिरने पर नहीं, अपनी आसक्ति पर मार पड़ने के कारण आ रहे हैं । व्यक्ति को निवास के लिए चार कमरों की आवश्यकता होती है, लेकिन चाहत सात मंजिल की रहती है । संयोगवशात् सात मंजिला मकान भी बन जाता है, लेकिन इसी के साथ आसक्ति के मकड़-जाल भी बुन जाते हैं । व्यक्ति की आसक्ति भी इतनी गहरी है कि मकान का एक भाग भी गिर जाये तो व्यक्ति रो पड़ता है, लेकिन मालिक के मरने पर कभी मकान को रोते हुए देखा है ? यहाँ चर्चा न मकान की, न मालिक की चर्चा आसक्ति की है । जिस मकान के लिए जिन्दगी भर की कमाई राख, पानी की जा रही है, सोचो, जब श्मशान में सोओगे, इतनी भी जगह तुम्हारे पास न होगी कि करवट भी बदल सको । जिस सोने और चाँदी को सजाने-संवारने में जीवन की भव्यता खोई है, ये सोने-चाँदी तब तिजोरी में धरे रह जाएंगे जब मौत तुम्हें अपने आगोश में छिपा ले जाएगी । ' शरीर माटी का है, इसे सजाया और संवारा जाता है सोने-चांदी से इंसान का जीवन छोटा है, पर अरमान.... छोटा-सा तू कितने बड़े अरमान है तेरे, ९४ / ज्योति कलश छलकें : ललितप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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