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________________ पूर्ति तो जैसे-तैसे कर लेता है, लेकिन इच्छायें... ! इच्छायें तो इतनी लम्बी होती हैं कि उसका छोर पकड़ना तो दूर व्यक्ति उन्हें देख भी नहीं पाता। मनुष्य इच्छाओं की पूर्ति के लिए मंसूबे बांधता है, ख्वाब देखता है, सपनों में खोता है, पर अन्त में हाथ मलने के सिवा इस मामले में कुछ नहीं कर पाता । हैसियत होती है झोंपड़ी की और ख्वाब देखता है महलों के । सोये-सोये भले ही सपनों में महल की यात्रा कर आये या रनिवास में रात बिता आये, पर आँख खुलने पर तो झोंपड़ी ही नसीब में रहेगी। अपनी इच्छाओं के पाँव वहीं तक पसारना ठीक है, जहाँ तक गूदड़ी की सीमा है । अन्यथा इच्छायें मात्र सपनों मे पूर्ण हो पाएंगी, जीवन का यर्थाथ कुछ और ही होगा नाम में शहीदों के डिग्रियाँ नहीं होती बदनसीब हाथों में चूड़ियां नहीं होती । सबको उस रजिस्टर पर हाजरी लगानी है मौत वाले दफ्तर में छुट्टियां नहीं होती । ढूंढते हो क्यों ममता खाड़कू की आँखों में सिगरेटों के पैकिट में बीड़ियां नहीं होती । जो तलाश में खुद की चल रहे अकेले हैं यार उन के पावों में जूतियां नहीं होती । मत करो बुढ़ापे में इश्क की तमन्नाएं क्योंकि फ्यूज बल्बो में बिजलियां नहीं होती । इतनी उँची मत छोड़ो गिर पड़ोगे धरती पर क्योंकि आसमानों में सीढ़ियां नहीं होती । कर्म के मुताबिक ही फल मिलेगा इंसां को । आमवाले पेड़ों पर भिंडिया नहीं होती। यह हमारे जीवन का कटु सत्य है । हमारी इच्छाएं बेलगाम हैं । दौड़ रही हैं वे मृग की तरह, हवाओं में दौड़ लगाकर, पर अन्त में पस्त ही होना पड़ेगा। अनासक्तिः संसार में संन्यास/९३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003891
Book TitleJyoti Kalash Chalke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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